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प्रश्न :
"कृष्ण काव्यधारा ने समाज को वात्सल्य व श्रृंगार की कोमल जीवंत भावनाओं में डुबाकर जीवन को सरस बना दिया।" कृष्णा काव्यधारा की शिल्पगत विशेषताओं की चर्चा करते हुए कथन की समीक्षा करें।
13 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• कृष्ण काव्य धारा की शिल्पगत विशेषताएँ
• निष्कर्ष
भक्ति काल की सगुण भक्ति धारा में कृष्ण काव्य को विशेष महत्व है। कृष्ण भक्ति के प्रचार में वल्लभाचार्य के 'शुद्धाद्वैत दर्शन' तथा 'पुष्टिमार्ग' का बहुत बड़ा योगदान रहा है। सूरदास, परमानंद दास,.कुंभनदास, कृष्णदास, नंददास, चतुर्भुजदास, छीतस्वामी और गोविंदस्वामी इस धारा के प्रमुख कवि हुए हैं। यह काव्य धारा लोकरंजन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।
शिल्पगत विशेषताएँ
काव्य रूप: कृष्ण काव्यधारा का काव्य प्रेम की गहन अनुभूतियों का काव्य है। अनुभूति की गहनता एवं तीव्रता के कारण इन कवियों की रचनाएँ प्रमुख रूप से मुक्तक में मिलती हैं। हालाँकि कुछ काव्य प्रबंधात्मक भी हैं पर यह प्रवृत्ति इस काव्यधारा में काफी कम है।
भाषा: इस काव्य धारा के भावों की सरस अभिव्यक्ति ब्रजभाषा में हुई है। इनकी ब्रज की मधुरता विलक्षण है। इस काव्यधारा की सफलता का परिणाम यह हुआ कि रीतिकाल में ब्रजभाषा एकमात्र काव्य भाषा बन गई।
छंद: इस काव्यधारा के कवियों ने दोहा, कवित्त, सवैया आदि छंदों का प्रयोग किया है। पदों का प्रयोग इस काव्यधारा की एक विशिष्ट पहचान है। इन कवियों में लयात्मकता तथा संगीतात्मकता के प्रति एक गहरा लगाव दिखता है।
अलंकार: अलंकारों का यहाँ भरपूर प्रयोग हुआ है। विशेषत: उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का। इन कवियों ने श्रृंगार व वात्सल्य पर आधारित लीलाओं को विभिन्न अलंकारों के माध्यम से नए-नए रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
प्रतीक: इन कवियों ने प्रतीकों का सफल प्रयोग किया है। एक खास अर्थ में देखा जाए तो कृष्ण ब्रह्म के एवं गोपियाँ आत्मा की प्रतीक हैं।
बिंब: चूँकि इस काव्यधारा की सभी कविताएँ कृष्ण की लीला पर आधारित हैं अतः है इनमें बिंबात्मकता की प्रवृत्ति बहुत प्रबल है। उदाहरण के लिये निम्नलिखित पंक्ति में बालक कृष्ण का सुंदर दृश्य है:
"मैया कबहि बढ़ैगी चोटी
कीति बार मोहि दूध पियत भई यह, अजहूं है छोटी।"निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि कृष्ण काव्य धारा का ने सामाजिक संक्रमण के तनाव में भी समाज को वात्सल्य व श्रृंगार की कोमल जीवंत भावनाओं में डूबा कर जीवन को सरस बना दिया। आचार्य शुक्ल के शब्दों में कहें तो इन्होंने समाज में 'जीने की चाह' को बनाए रखने में काफी योगदान दिया।
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