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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘संयुक्त राष्ट्र के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था तकरीबन 1 प्रतिशत तक कम हो सकती है।’ इस संदर्भ में भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करते हुए संभावित समाधान सुझाएँ।

    11 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ

    • संभावित उपाय 

    • निष्कर्ष

    संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण वर्ष 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था तकरीबन 1 प्रतिशत तक कम हो सकती है। साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि यदि बिना पर्याप्त राजकोषीय उपायों के आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिबंध और अधिक बढ़ाया जाता है तो वैश्विक अर्थव्यवस्था और अधिक प्रभावित हो सकती है। विश्व के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से प्रभावित हुई है।

    विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह जाएगी, तो वहीं 2020-21 में तुलनात्मक आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी जो घटकर मात्र 2.8 प्रतिशत रह जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह महामारी ऐसे वक्त में आई है जबकि वित्तीय क्षेत्र पर दबाव के कारण पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती की मार झेल रही थी।

    भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियाँ-

    सकल घरेलू उत्पाद: विभिन्न रेटिंग एजेंसियों ने चालू वित्त वर्ष के लिये अपने संशोधित अनुमानों में जीडीपी वृद्धि दर में उल्लेखनीय कमी का अनुमान लगाया है।

    रिवर्स माइग्रेशन: लॉकडाउन के कारण निर्माण, विनिर्माण और तमाम आर्थिक गतिविधियों के बंद होने से प्रवासी मज़दूर महानगरों से अपने गाँव की ओर लौट रहे हैं। जिससे महानगरों की आर्थिक गतिविधियाँ लॉकडाउन में छूट देने के बावज़ूद सुचारू रूप से कार्य नहीं कर पा रही हैं। इन महानगरों आने वाले कुछ समय तक मानव संसाधन की कमी का सामना करना पड़ सकता है।

    ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मांग में गिरावट: लॉकडाउन के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि गतिविधियाँ ठप्प हैं परिणामस्वरूप कृषकों की आय समाप्त हो गई है। कृषकों की आय समाप्त होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होने वाली मांग तेज़ी से घट रही है।

    ग्रामीण बाज़ार की तालाबंदी: वैश्विक महामारी और जारी लॉकडाउन के कारण ग्रामीण बाज़ार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

    न्यून कृषि गतिविधियाँ: पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे कृषि संपन्न राज्यों में व्यापक तौर पर कृषि कार्य किया जाता है, रिवर्स माइग्रेशन के कारण इन राज्यों में खड़ी फसल को काटने के लिये पर्याप्त मज़दूर नहीं मिल पा रहे हैं जिससे खड़ी फसल बर्बाद हो गई है और अब किसान अगली फसल की बुवाई नहीं करना चाहते हैं।

    उत्पादन में कमी: लॉकडाउन के कारण उद्योगों में काम न होने से उत्पादन में गिरावट हुई है।

    महिलाओं की दयनीय स्थिति: पारिवारिक आय में कमी से महिलाओं की स्थिति में गिरावट होगी क्योंकि भारतीय सामाजिक व्यवस्था में पूर्व में भी महिलाओं को सामाजिक वंचनाओं का शिकार होना पड़ा है।

    आर्थिक आपातकाल की संभावना: लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था में विकास का आर्थिक चक्र घूमना बंद हो चुका है। ऐसे में सरकार के द्वारा सार्वजनिक खर्चों में कटौती के साथ अपने कर्मचारियों के वेतन में कटौती भी की जा सकती है तथा अनावश्यक व्यय पर रोक लगाने हेतु आर्थिक आपातकाल के विकल्प पर भी विचार हो सकता है।

    संभावित उपाय- भारत को कुछ तात्कालिक नीतिगत उपायों की आवश्यकता है, जो न केवल महामारी को रोकने और जीवन को बचाने की दिशा में कार्य करें बल्कि समाज में सबसे कमज़ोर व्यक्ति को आर्थिक संकट से बचाने और आर्थिक विकास तथा वित्तीय स्थिरता बनाए रखने में भी सहायक हों।

    विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था पर वायरस के प्रभाव को कम करने के लिये सही ढंग से तैयार किया गया राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज की आवश्यकता है, जिसमें वायरस के प्रसार को रोकने के लिये स्वास्थ्य व्यय को प्राथमिकता और महामारी से प्रभावित परिवारों को आर्थिक सहायता प्रदान करना शामिल हो। केंद्र सरकार द्वारा घोषित किया गया आर्थिक पैकेज इस दिशा में उठाया गया सराहनीय कदम है।

    रिवर्स माइग्रेशन के प्रभाव को सीमित करने के लिये पिछड़े राज्यों में छोटे और मध्यम उद्योगों जैसे- कुटीर उद्योग, हथकरघा उद्योग, हस्तशिल्प उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि कार्यों को प्रारंभ करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।

    भारत की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये सरकार को विनिर्माण क्षेत्र को विकसित करने पर ध्यान देना होगा। हमारे सामने चीन एक बेहतरीन उदाहरण है जिसने विनिर्माण क्षेत्र को विकसित कर न केवल बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन किया बल्कि देश की अवसंरचना को भी मज़बूती प्रदान की।

    भारत के सभी राज्यों को श्रम कानूनों में सुधार करना चाहिये ताकि घरेलू निवेशकों को निवेश करने हेतु प्रोत्साहित किया जा सके।

    विदेशी निवेशकों में चीन के प्रति शंका भारत के लिये एक बड़ा अवसर प्रस्तुत करती है क्योंकि कई कंपनियाँ चीन से अपना कारोबार समेट कर बाहर जाना चाहती हैं ऐसे में भारत को निवेश प्रक्रिया को सरल बनाकर निवेशकों को आकर्षित करना चाहिये।

    भारतीय अर्थव्यवस्था के शीघ ही पटरी पर लौटने की उम्मीद है ऐसे में एक सार्वजनिक समर्थित नीति, निज़ी क्षेत्र की भागीदारी और नागरिकों के समर्थन के माध्यम से एकीकृत बहुआयामी दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है।

    उपरोक्त समस्याओं को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार को स्वास्थ्य प्रतिबद्धताओं को पूरा करते हुए लगातार विकास की गति का अवलोकन करने की आवश्यकता है, साथ ही चीन पर निर्भर भारतीय उद्योगों को आवश्यक समर्थन एवं सहायता प्रदान करनी चाहिये।

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