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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ‘मज़दूरी संहिता (केंद्रीय) नियम -2020’ मसौदे को लागू करने में आने वाली चुनौतियों की चर्चा करते हुए तार्किक समाधानों पर प्रकाश डालें।’ मसौदे को लागू करने में आने वाली चुनौतियों की चर्चा करते हुए तार्किक समाधानों पर प्रकाश डालें।

    10 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण: 

    • भूमिका

    • चुनौतियां 

    • समाधान

    • निष्कर्ष

    हाल ही में ‘केंद्रीय श्रम और रोज़गार मंत्रालय’ द्वारा आधिकारिक गजट के माध्यम से ‘मज़दूरी संहिता अधिनियम, 2019’ के कार्यान्वयन के लिये तैयार नियमों का मसौदा प्रस्तुत किया गया है। गजट में इसका नाम ‘मज़दूरी संहिता (केंद्रीय) नियम -2020’ रखा गया है। इस मसौदे में मुख्य तौर पर चार श्रम कानून जिसमें न्यूनतम मज़दूरी कानून, मज़दूरी भुगतान कानून, बोनस भुगतान कानून और समान पारितोषिक कानून को समाहित किया गया है।

    चुनौतियाँ:

    • इस मसौदे में अभी भी न्यूनतम मज़दूरी को परिभाषित करने के संदर्भ में अस्पष्टता बनी हुई है।
    • इस अधिनियम के अगस्त 2019 में संसद से पारित होने पश्चात एक लंबी प्रक्रिया के बाद भी अभी तक इसे लागू नहीं किया जा सका है। जिससे कामगारों को सही समय पर इसका लाभ मिलने में देरी हुई है।
    • इस मसौदे में स्वीकृत कैलोरी की मात्रा (2700 कैलोरी) वर्ष 1957 में ‘भारतीय श्रम सम्मेलन’ में निर्धारित किया गया था। ऐसे में लगभग 63 वर्ष पहले निर्धारित इस मानक में परिवर्तन की आवश्यकता है।
    • वर्तमान में कानूनी जटिलताओं के होने से और जागरूकता के अभाव के कारण किसी मज़दूर के लिये नियोक्ता के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ना आसान नहीं है।
    • देश में अभी भी श्रमिकों की एक बड़ी आबादी असंगठित क्षेत्र से संबंधित हैं, ऐसे में इन इकाईयों में श्रमिक कानूनों को लागू करा पाना एक बड़ी चुनौती है।

    समाधान:

    • इस पहल के माध्यम से मज़दूरी के भुगतान के संदर्भ में पारदर्शिता बढ़ेगी और मज़दूरी से जुड़ी अनियमितताओं को दूर करने में सहायता प्राप्त होगी।
    • सरकार को पूरे देश में सभी क्षेत्रों में कार्य कर रहे श्रमिकों के लिये एक स्थाई और समान न्यूनतम पारिश्रमिक का निर्धारण करना चाहिये, जिसमें राज्य सरकारों या नियोक्ताओं द्वारा कार्यक्षेत्र और श्रम की आवश्यकता के आधार पर अतिरिक्त पारिश्रमिक को जोड़ा जा सके।
    • सरकार को असंगठित क्षेत्र की अधिक-से-अधिक औद्योगिक इकाइयों (छोटी, बड़ी सभी) को पंजीकरण के माध्यम से संगठित क्षेत्र से जुड़ने के लिये प्रेरित करना चाहिये, जिससे किसी विवाद की स्थिति में आसानी से श्रमिकों के हितों की रक्षा की जा सके।
    • श्रमिक संगठनों की सक्रियता और श्रमिकों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक कर न्यूनतम मज़दूरी और अन्य विवादों का समाधान आसानी से किया जा सकता है।

    निष्कर्षतः श्रमिकों के हितों की रक्षा के साथ-साथ श्रमिक-नियोक्ता संबंधों में सामंजस्य बनाए रखने के लिये छोटे विवादों के मामलों के लिये जटिल कानूनी प्रक्रिया के बजाय आसान विवाद निस्तारण प्रणाली की व्यवस्था की जानी चाहिये।

    सरकार को श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और अंतर्राज्यीय पलायन को रोकने हेतु राज्य सरकारों से विचार-विमर्श कर एक देश एक श्रम कानून की विचारधारा को अपनाने के लिये राज्यों को प्रेरित करना चाहिये।

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