डा. अंबेडकर का योगदान केवल संविधान निर्माण तक ही सीमित नहीं था बल्कि सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर भी उन्होंने अपना अमूल्य योगदान दिया। असमानता दूर करने के लिये अंबेडकर द्वारा प्रस्तुत के सुझावों की चर्चा करें।
10 Aug, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • असमानता दूर करने के लिये अंबेडकर द्वारा प्रस्तुत के सुझाव • निष्कर्ष |
डा. अंबेडकर ने समाज में निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर न सिर्फ बराबरी का दर्जा दिलाया बल्कि राजनैतिक स्तर पर दलितों, शोषितों व महिलाओं को बराबरी का दर्जा प्रदान करने हेतु विधि का निर्माण कर उसे संहिताबद्ध किया।अंबेडकर की प्रारंभिक शिक्षा बॉम्बे के एल्फिंस्टन स्कूल से हुई। इसके बाद बॉम्बे विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की तत्पश्चात उच्चतर शिक्षा कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से प्राप्त की। डा. अंबेडकर जीवन भर दलितों व शोषितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ते रहे। वे ऐसा समतामूलक समाज स्थापित करना चाहते थे जिसमें किसी भी प्रकार के भेदभाव का कोई स्थान न हो।
असमानता दूर करने के लिये अंबेडकर के सुझाव निम्नलिखित थे-
डॉ. अंबेडकर मानते थे कि समाज के विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों का सरकार के विभिन्न अंगों में प्रतिनिधित्व होना चाहिये। उनके अनुसार अल्पसंख्यक समुदायों को अपना प्रतिनिधित्व ख़ुद करना चाहिये क्योंकि सिर्फ़ ‘मुद्दे का रखा जाना’ मायने नहीं रखता बल्कि उस मुद्दे का प्रतिनिधित्व स्वयं करना मायने रखता है।
स्वतंत्रता के पहले भारत की ज़्यादातर आबादी ग्रामीण थी, जहाँ आजीविका का मुख्य स्रोत कृषि थी। परंतु कृषि की ज़मीनों पर ज़मींदारों और कुछ उच्च जातियों का क़ब्ज़ा था। शेष ज़्यादातर जातियाँ भूमिहीन थीं और मज़दूरी का कार्य करती थीं। स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश से जमींदारी प्रथा का उन्मूलन करके भूमि सुधार लागू कर सहकारी खेती कराए जाने का वचन दिया परंतु राजनीतिक कारणों से स्वतंत्रता के बाद इसे लागू नहीं किया जा सका।
स्वतंत्रता से पूर्व गाँव की व्यवस्था जजमानी प्रथा से चलती थी, जिसमें एक जाति दूसरी जाति पर निर्भर होती थी। इस निर्भरता की वजह से ही सवर्ण जातियाँ दलित जातियों का विभिन्न प्रकार से शोषण करती थी। इस तरह के शोषण से निकलने के लिये ही अंबेडकर ने सेपरेट सेटलमेंट की मांग की।
अंबेडकर सरकार की सीमाओं से परिचित थे , जिसकी वजह से ही उन्होंने अपने समाज के नौकरीपेशा लोगों से कहा था कि शोषितों और वंचितों को ऊपर उठाने के लिये वे आर्थिक रूप से मदद करें, जिसे पे-बैक टू सोसायटी कहा गया।
डा. अंबेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध संगठित प्रयास करते हुए वर्ष 1924 में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की। इसका प्रमुख उद्देश्य शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अछूत वर्ग के कल्याण की दिशा में कार्य करना था।
दलित अधिकारों की रक्षा के लिये उन्होंने मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी प्रभावशाली पत्रिकाएँ निकालीं।