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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    रोस्तोव द्वारा प्रतिपादित एक राष्ट्र के विकास की उत्प्रस्थान एवं अनुवर्ती अवस्थाओं की आवश्यक शर्तो की व्याख्या कीजिये।

    08 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद:

    • रोस्तोव द्वारा प्रतिपादित एक राष्ट्र के विकास की उत्प्रस्थान एवं अनुवर्ती अवस्थाओं की आवश्यक शर्तें

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • संक्षिप्त भूमिका लिखें।
    • किसी भी भूगोलवेत्ता का नाम पूरा लिखें।
    • रोस्तोव द्वारा दिए गए आर्थिक संवृद्धि के सिद्धांत में आर्थिक वृद्धि की पाँच अवस्थाओं (Rostow's Stages of Economic Growth Model) का उल्लेख कीजिये।
    • शब्द सीमा कम करने के लिये पाँच अवस्थाओं को चित्र/माइंड मैप के साथ दर्शाइये।  
    • निष्कर्ष में रोस्तोव के सिद्धांत का भारत के परिप्रेक्ष में उल्लेख कीजिये।

    वॉल्ट व्हिटमैन रोस्तोव (Walt Whitman Rostow) संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक इतिहासकार थे। रोस्तोव द्वारा एक ऐसे मॉडल को विकसित करने का प्रयास किया गया जिसके द्वारा किसी भी देश के क्रमिक आर्थिक विकास का विश्लेषण किया जा सकता है।

    रोस्तोव ने अपने आर्थिक संवृद्धि के सिद्धांत में आर्थिक वृद्धि की पाँच अवस्थाओं (Rostow's Stages of Economic Growth Model) का उल्लेख किया है। इस सिद्धांत को वर्ष 1960 में प्रकाशित किया गया था।

    इस मॉडल के अनुसार, किसी भी राष्ट्र का विकास कोई गत्यात्मक प्रक्रिया नहीं है बल्कि जैविक प्रक्रिया के समान है। समय और स्थान के परिप्रेक्ष्य में अलग होते हुये भी किसी देश को इन अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है। यह मॉडल बताता है कि किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास पाँच बुनियादी चरणों में होकर गुजरता है।

    1. परंपरागत समाज की अवस्था (The Traditional Society)
    2. स्वयं स्फूर्ति से पूर्व की दशा (The Pre-Take Off Stage)
    3. स्वयं स्फूर्ति की दशा (The Take-Off Stage)
    4. परिपक्वता की अवस्था (Drive to Maturity)
    5. अत्यधिक जन उपभोग की अवस्था (Stage of High Mass Consumption)

    Rostow-growth

    उत्प्रस्थान अवस्था किसी भी राष्ट्र के तीव्रतम विकास को सूचित करती है। इस अवस्था के पूर्व किसी भी देश को पारंपरिक परिवेश व उत्प्रस्थान पूर्व परिस्थितियों की आवश्यक शर्तो को पूरा करना पड़ता है। अर्थात् पारंपरिक समाज की अवस्था में किसी देश में सामाजिक-आर्थिक पिछड़ापन मौजूद होता है। यह आदिम समाज, रूढ़िवादी समाज को दर्शाता है जिसमें अंधविश्वास धार्मिक कट्टरता, समाजिक शोषण आदि समस्याएँ विद्यमान होती हैं इस अवस्था में केवल पशुचारण, जीवन निर्वाह कृषि व स्थानांतरित कृषि की जाती है। कच्चे माल का निर्यात तथा तैयार वस्तुओं का आयात किया जाता है। अर्थात् इस अवस्था में किसी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था प्रतिस्पर्द्धा विहीन होती है। जैसे- वर्तमान मध्य अफ्रीकी देश व एशियाई में भूटान, कंबोडिया आदि।

    उत्प्रस्थान की पूर्व परिस्थितियों की अवस्था में निवेश के द्वारा आधारभूत संरचना के विकास पर बल दिया जाता है। जो कृषि व उद्योगों के विकास के लिये प्रमुख आधार प्रस्तुत करती हैं। इसमें सरकार की सीमित भागीदारी होती है। जैसे- भारत में ब्रिटिश शासन के समय यह स्थिति देखी गई। इस अवस्था में उत्पादकता निवेश दर में वृद्धि पर ज़ोर दिया जाता है, सामाजिक एवं आर्थिक बुनियादी संरचना की शुरूआत, आर्थिक आधार पर नये अभिजात्य वर्ग का उदय और प्रभावी केंद्रीकृत राष्ट्र की अवधारणा इस अवस्था की मूल विशेषताएँ हैं। इस अवस्था में पूंजीपति वर्ग का उदय विकास की अगली अवस्था अर्थात् उत्प्रस्थान अवस्था का मार्ग प्रशस्त करता है।

    रोस्तोव के अनुसार उत्प्रस्थान की अवस्था किसी देश के आर्थिक विकास की लघुकालीन अवस्था है क्योंकि इस अवस्था में कम समय में अधिक विकास की संभावना अधिक होती है। निवेश और आर्थिक वृद्धि द्वारा प्राथमिक तथा विनिर्माण क्षेत्रों में नये उद्योगों का विकास होता है। इससे नगरीकरण व औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलता है। साक्षरतादर, रहन-सहन का स्तर व क्रय शक्ति आदि में वृद्धि दिखाई देती है। आधारभूत संरचना पर निवेश स्पष्ट दिखाई देता है। देश लगभग औद्योगिक क्रांति के दौर से गुजरने लगता है। कुछ उद्योगों में नई तकनीकी प्रगति में लगातार वृद्धि की मुख्य भूमिका होती है। इस अवस्था में ‘वृद्धि’ ही समाज को नियंत्रित करने वाला आवश्यक कारक होता है जिसके अंतर्गत आर्थिक, सामाजिक मुद्दों, निवेश में बढ़ोतरी खासकर अग्रणी वस्तु निर्माण में बढ़ोत्तरी शामिल है द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान का अभूतपूर्व विकास, वर्ष 1850-1875 में यूएसए का विकास तथा पाँचवीं पंचवर्षीय योजना के समय भारत इस अवस्था में था।

    उत्प्रस्थान के पश्चात् अनुवर्ती अवस्थाओं के अंतर्गत परिपक्वता व व्यापक उपभोग की अवस्थाएँ आती है। परिपक्वता की अवस्था किसी राष्ट्र की विकसित अर्थव्यवस्था का प्रतीक है। इस अवस्था में कुशल व विशिष्ट श्रमिकों के विशिष्ट उपयोग द्वारा सामाजिक एवं आर्थिक कार्यो में आधुनिक अर्थात् वैकल्पिक तकनीक का प्रयोग होता है। उद्योगों का विकेंद्रीकरण और विविधिकरण प्रारंभ होता है। बहुआयामी आर्थिक-सामाजिक विकास की प्रक्रिया प्रारंभ होती है। इस अवस्था में निर्यात बढ़ता है तथा आयात कम होता है। इस अवस्था की मुख्य विशेषताएँ उच्च साक्षरता दर, उच्च जीवन स्तर, उच्च क्रय शक्ति है। विश्व के अधिकतर विकसित देश जैसे- संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान आदि इसी अवस्था में है।

    आर्थिक, सामाजिक विकास की प्रौढावस्था के बाद व्यापक जन उपभोग की अवस्था प्रांरभ हो जाती है। यह किसी भी देश के विकास की चरम अवस्था होती है। इस अवस्था में सेवा क्षेत्र की भूमिका अहम होती है। इस अवस्था में आय में भारी वृद्धि के कारण उपभोक्तावादी समाज की स्थापना होती है। अर्थात् इस अवस्था की आवश्यक शर्तानुसार कोई राष्ट्र विकास के सभी आयामों को प्राप्त कर स्थिरता की स्थिति में होता है।

    इस प्रकार रोस्तोव द्वारा किसी भी देश के आर्थिक-सामाजिक स्थितियों का आसानी से विश्लेषण कर उनकी विभिन्न अवस्थाओं (अल्पविकास, विकासशील, विकसित) का पता लगाया जा सकता है। जिनके माध्यम से वैश्विक स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों की विकास संबंधी रणनीतियों को अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्रदान कर वैश्विक समावेशी व सतत् विकास की ओर अग्रसर किया जा सकता है। साथ ही भारत के राज्यों का रोस्तोव के आर्थिक संवृद्धि के मॉडल के आधार पर विश्लेषण करके क्षेत्रीय आर्थिक विभेदन को कम करने के लिये सटीक रणनीति बनाई जा सकती है।

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