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प्रश्न :
हिन्दी भाषा एवं लिपि के विकास में 'नागरी प्रचारिणी सभा' के योगदान पर प्रकाश डालिए।
08 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• हिन्दी भाषा एवं लिपि के विकास में नागरी प्रचारिणी सभा का योगदान
• निष्कर्ष
श्यामसुंदर दास, रामनारायण मिश्र तथा ठाकुर शिवकुमार सिंह ने हिन्दी भाषा, साहित्य तथा देवनागरी लिपि की उन्नति, प्रचार एवं प्रसार के लिए सन् 1893 ई. में 'नागरी प्रचारिणी सभा' की स्थापना काशी में की। सभा के प्रयासों से उत्तर प्रदेश (तत्कालीन संयुक्त प्रांत) में नागरी के प्रयोग की अनुमति मिली और सरकारी कर्मचारियों के लिए हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं का ज्ञान अनिवार्य कर दिया गया। सभा ने अपने स्थापना काल से ही इस बात पर ध्यान दिया की प्राचीन विद्वानों के हस्तलेख जो नगरों और देहातों में नष्ट हो रहे थे, उनका उद्धार किया जाए।
सभा ने हिन्दी शब्द सागर, हिन्दी विश्वकोश, वैज्ञानिक शब्दावली आदि का प्रकाशन किया हिन्दी शब्द सागर में लगभग एक लाख शब्द हैं जिन्हें कोशबद्ध करने में अनेक विद्वानों ने योगदान दिया। विश्वकोश 12 खंडों में प्रकाशित है। काशी नागरी सभा ने पंडित कामता प्रसाद गुरु तथा आचार्य किशोरी दास बाजपेई द्वारा लिखित व्याकरण का भी प्रकाशन किया। हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में जहाँ 'सरस्वती' पत्रिका को आरंभ करने का श्रेय सभा को है वहीं अपने आरंभ से लेकर आज तक शोध पत्रिका 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' का भी प्रकाशन करती आ रही है। इसने हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का संगठन एवं आयोजन भी किया।
सभा की यह प्रवृत्ति प्रारंभ से ही रही है कि विभिन्न विषयों के उत्तम ग्रंथों के प्रकाशन पर वह प्रतिवर्ष पुरस्कार एवं स्वर्ण, रजत पदक ग्रंथकर्ताओं को देती आ रही है। अपनी जैसी संस्थाओं से संबंध स्थापित करना, हिन्दी पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देना, हिन्दी के संकेत शॉर्ट हैंड शिक्षा देना गोष्ठियों का आयोजन आदि सभा की प्रवृतियाँ हैं। इस प्रकार हिन्दी भाषा एवं देवनागरी लिपि के विकास में सभा का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।
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