हाल ही में देश में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। बाढ़ प्रबंधन हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयासों की चर्चा करें। बताएं कि इससे निपटने हेतु अन्य क्या व्यवहारिक उपाय किये जा सकते हैं।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भारत में बाढ़ की स्थिति
• सरकार के प्रयास
• अन्य उपाय
• निष्कर्ष
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हाल ही में असम के लगभग 18 ज़िले बाढ़ की चपेट में आये जिससे भारी संख्या में जनधन की हानि हुई। दूसरी ओर दक्षिण भारत में बाढ़ नवंबर से जनवरी माह के बीच लौटते मानसून से होने वाली तीव्र वर्षा द्वारा आती है। इसके अलावा राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आकस्मिक बाढ़ के कारण पिछले कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं।
रत में बाढ़ का मुख्य कारण मानसूनी वर्षा की तीव्रता तथा मानव कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है किंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है। बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है।
बाढ़ प्रबंधन हेतु सरकारी प्रयास-
राष्ट्रीय जल नीति, 2012
- जहाँ संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपायों के माध्यम से बाढ़ एवं सूखे जैसी जल संबंधी आपदाओं को रोकने के लिये हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये, वहीं बाढ़/सूखे से निपटने के लिये तंत्र सहित पूर्व तैयारी जैसे विकल्पों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। साथ ही प्राकृतिक जल निकास प्रणाली के पुनर्स्थापन पर भी अत्यधिक ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है।
- नदी द्वारा किये गए भूमि कटाव जैसे स्थायी नुकसान को रोकने के लिये तटबंधों इत्यादि के निर्माण हेतु आयोजना, निष्पादन, निगरानी भू-आकृति विज्ञानीय अध्ययनों के आधार पर किया जाना चाहिये। चूँकि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक तीव्र वर्षा होने तथा मृदा कटाव की संभावना बढ़ने से यह और भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
- बाढ़ का सामना करने के लिये तैयार रहने हेतु बाढ़ पूर्वानुमान अति महत्त्वपूर्ण है तथा इसका देश भर में सघन विस्तार किया जाना चाहिये और वास्तविक समय आँकड़ा संग्रहण प्रणाली का उपयोग करते हुए आधुनिकीकरण किया जाना चाहिये।
- जलाशयों के संचालन की प्रक्रिया को विकसित करने तथा इसका कार्यान्वयन इस प्रकार किया जाना चाहिये ताकि बारिश के मौसम के दौरान बाढ़ को सहन करने संबंधी क्षमता प्राप्त हो सके और अवसादन के असर को कम किया जा सके। ये प्रक्रियाएँ ठोस निर्णय सहयोग प्रणाली पर आधारित होनी चाहिये।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
- दिसंबर, 2005 को भारत सरकार द्वारा ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ अधिनियमित किया गया, जिसके तहत ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ एवं ‘राष्ट्रीय आपदा मोचन बल’ का गठन किया गया।
- बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम
- बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम प्रभावी बाढ़ प्रबंधन, भू-क्षरण पर नियंत्रण के साथ-साथ समुद्र तटीय क्षेत्रों के क्षरण की रोकथाम पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।
- यह प्रस्ताव देश में बाढ़ और भू-क्षरण से शहरों, गाँवों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों, संचार नेटवर्क, कृषि क्षेत्रों, बुनियादी ढाँचों आदि को बचाने में मदद करेगा।
- बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम तथा नदी प्रबंधन गतिविधियों और सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंधित कार्य नामक दो स्कीमों के घटकों का आपस में विलय करके योजना तैयार की गई है।
- जलग्रहण उपचार कार्यों से नदियों में गाद कम करने में सहायता मिलेगी।
बाढ़ प्रबंधन हेतु सुझाव
- राज्य स्तर पर बाढ़ नियंत्रण एवं शमन के लिये प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करना तथा स्थानीय स्तर पर लोगों को बाढ़ के समय किये जाने वाले उपायों के बारे में प्रशिक्षित करना।
- संरचनात्मक उपाय जैसे कि तटबंध, कटाव रोकने के उपाय, जल निकास तंत्र का सुदृढ़ीकरण, तटीय सुरक्षा के लिये दीवार जैसे उपाय जो कि उस खास भू-आकृतिक क्षेत्र के लिये सर्वश्रेष्ठ हों।
- गैर-संरचनागत उपाय, जैसे कि आश्रय गृहों का निर्माण, सार्वजनिक उपयोग की जगहों को बाढ़ सुरक्षित बनाना, अंतर्राज्यीय नदी बेसिन का प्रबंधन, बाढ़ के मैदानों का क्षेत्रीकरण इत्यादि।
- बाढ़ की प्रकृति के अनुसार आपदा-मोचन बल को प्रशिक्षित करना तथा आवश्यकता पड़ने पर तुरंत तैनात करना।
- विनिर्माण में संरचना के प्रारूप, स्थान, सामग्री और अनुमेय क्षति के प्रकार एवं आकार के विषय में उचित निर्णय लेना महत्त्वपूर्ण है ताकि प्रकृति को कम-से-कम नुकसान पहुँचे।
- बांध प्रबंधन और समय पर लोगों को सचेत किये जाने में पर्याप्त सावधानी बरती जानी चाहिये।
- पुनर्वनीकरण, जल निकास तंत्र में सुधार, वाटर-शेड प्रबंधन, मृदा संरक्षण जैसे उपाय।
- वर्तमान परिदृश्य ऐसा है कि देश के कुछ हिस्से बाढ़ से घिरे हुए हैं तो कुछ अन्य हिस्से जल की अत्यंत कमी का सामना कर रहे हैं। ऐसे में नदी जोड़ों परियोजना एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत कर सकती है।
उपरोक्त के अतिरिक्त अवसंरचनात्मक तैयारी, संस्थागत सतर्कता विकास जैसे- शहरी क्षेत्रों में हरित कवर व हरित पट्टी को बढ़ाना, करना, नागरिकों को बचाव का प्रशिक्षण देना आदि पर बल दिया जाना चाहिए साथ ही
ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए अर्थात अतीत की घटनाओं से सीखना और उसके आधार पर सुरक्षा के समुचित कदम उठाना, निजी क्षेत्र को इससे संबद्ध करना, लोगों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करना, शहरी लोगों के रहन-सहन की आदतें व उनकी जीवनशैली में सुधार संबंधी मानकों को अपनाना आदि बाढ़ प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।