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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    गण संघों (गैर-राजतंत्रीय राज्य प्रणालियों) का विवरण प्रस्तुत कीजिये, उनका पतन किस कारण हुआ था? (250 शब्द )

    04 Aug, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • कथन के पक्ष में तर्क

    • उदाहरण

    • निष्कर्ष

    प्रारंभ में अधिकांश इतिहासकाराें की धारणा थी कि प्राचीन भारत में केवल राजतंत्र ही थे किंतु बाद की खोजों से यह बात प्रकाश में आई कि प्राचीन भारत में राजतंत्रों के साथ-साथ गण अथवा संघ राज्यों का भी अस्तित्त्व था। गैर राजतंत्रीय राज्य प्रणालियों का उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। इसके अतिरिक्त गण संघों का विवरण यूनानी-रोमन लेखकों द्वारा किया गया है। पुरातात्त्विक प्रमाणों के रूप में विभिन्न गण संघाें के सिक्के के प्रमाण भी पाए गए।

    छठीं शताब्दी ईसा पूर्व अर्थात् बुद्धकालीन भारत में कई गणराज्य उत्तर-भारत में स्थापित थे जिनकी संख्या 10 बताई जाती है, इनमें से कुछ थे:

    • कपिल वस्तु के साक्ष्य- यह गणराज्य नेपाल की तराई में स्थित था जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी। इसमें गोरखपुर का पश्चिमी भाग और नेपाल के कुछ क्षेत्र शामिल थे। इसी गणराज्य में बुद्ध का जन्म हुआ था। कपिलवस्तु इस समय शिक्षा संस्कृति का केंद्र माना जाता था।
    • अल्लकप्प के बुली- यह गणराज्य आधुनिक बिहार प्रांत के शाहाबाद, आरा और मुज़फ्फरपुर ज़िलों के बीच स्थित था। वेठद्वीप (बेतिया) इनकी राजधानी थी।
    • रामगाय के कोलिय: यह शाक्य गणराज्य के पूर्व में स्थित था जो दक्षिण में सरयू नदी तक विस्तृत था। शाक्य एवं कोलिय राज्यों के बीच रोहिणी नदी बहती थी, अतः नदी के पानी को लेकर शाक्यों एवं कोलियो के बीच संघर्ष की चर्चा मिलती है।
    • पाबा के मल्ल: यह विशिष्ट गोत्र के क्षत्रिय थे, ये संभवतः आधुनिक पडरौना या फाजिलपुर में रहते थे। जैन साहित्य से पता चलता है कि अजातशत्रु के भय से मल्लों ने लिच्छवियों के साथ मिलकर संघ बनाया था।
    • कुशीनारा के मल्ल: यह मल्लों की दूसरी शाखा थी। आधुनिक कसिया ही कुसीनारा के नाम से विख्यात थी जो कुसीनारा के मल्लों की राजधानी थी। कसिया वर्तमान में देवरिया ज़िले में है।
    • विपनीवन के मौर्य: मौर्य गण की राजधानी विपलीवन थी जो कुसीनारा से लगभग 50 मील पश्चिम में स्थित थी, कुछ विद्वान चन्द्रगुप्त मौर्य को इसी कुल से जोड़कर देखते हैं।
    • मिथिला के विदेह: बिहार के दरभंगा तथा भागलपुर ज़िलों के भू-भाग पर विदेह गणराज्य स्थित था। यह प्रारंभ में राजतंत्र था किंतु बुद्ध के समय से संघ राज्य बन गया। इसकी राजधानी मिथिला थी जिसकी वर्तमान में पहचान जनकपुर के नाम से की जाती है। बुद्ध के समय मिथिला एक व्यापारिक नगर था।
    • वैशाली के लिच्छवि: बुद्ध के समय यह सबसे बड़ा एवं शक्तिशाली गणराज्य था, इसकी राजधानी वैशाली मुज़फ्फरपुर ज़िले के बसाढ़ नामक स्थान पर स्थित थी। महाबग्ग जातक में बैशाली को एक धनी एवं समृद्धशाली तथा घनी आवादी वाला नगर कहा गया है।

    उपरोक्त गणराज्य अत्यंत शक्तिशाली एवं सुव्यवस्थित थे। उन्होंने अपने समकालीन राजतंत्रों का बड़ा प्रतिरोध किया था। देश भक्ति एवं स्वाधीनता की भावना इन गणराज्यों में कूट-कूट कर भरी थी किंतु वे राजतंत्रों के विरुद्ध अपनी स्वतंत्रता की रक्षा नहीं कर पाए अंततोगत्वा उनका पतन हो गया। इसके लिये अनेक कारणों को उत्तरदायी बताया गया है।

    एक विचार के अनुसार, समुद्रगुप्त की साम्राज्यवादी नीति ने गणराज्यों की स्वाधीनता का अंत कर दिया जिसके कारण इनका पतन हो गया। किंतु यह विचार तर्कसंगत नहीं लगता क्योंकि समुद्रगुप्तकालीन गणराज्य नाममात्र के लिये प्रभुसत्ता स्वीकार करते थे, उन्हें पर्याप्त आंतरिक स्वायत्तता मिली हुई थी।

    दूसरा कारण गणराज्यों के शासन में उच्च पदों का आनुवंशिक होना पाया गया, चूँकि प्राचीन ग्रंथों में सर्वत्र राजतंत्रों की प्रशंसा की गई थी तथा राजा का पद दैवीय माना गया था। अतः गणराज्यों ने भी सुशासन तथा सुरक्षा की दृष्टि से राजतंत्रात्मक प्रणाली को अपनाना हितकर समझा। क्रमशः गणराज्यों की सत्ता प्रभावशाली व्यक्तियों के हाथों में केंद्रित होती गई और धीरे-धीरे शासन का जनतांत्रिक स्वरूप समाप्त हो गया।

    निष्कर्षतः गणतंत्रों की आपसी फूट तथा समकालीन राजतंत्रों की विस्तारवादी नीति को ही न्यूनाधिक रूप से उनके पतन के लिये उत्तरदायी माना जा सकता है।

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