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प्रश्न :
पद्माकर के काव्य की काव्यगत विशेषताओं पर सोदाहरण चिंतन करें।
31 Jul, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
- भूमिका
- भाव पक्ष की विशेषताएँ
- शिल्प पक्ष की विशेषताएँ
पद्माकर रीतिबद्ध काव्य धारा के प्रमुख कवियों में से एक हैं। इन्हें लगभग 10 राज्य दरबारों से राजाश्रय प्राप्त हुआ। इनकी 11 कृतियों का उल्लेख मिलता है। जिनमें से 'जगद्विनोद', 'पद्माभरण', 'गंगा लहरी' इत्यादि प्रमुख है। शुक्ल जी ने समग्रत: पद्माकर की नूतन कल्पना दृश्य चित्रण भाषा की अनेक रूपता की प्रशंसा की है। इनके काव्य की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित रुप से चित्रित की जा सकती हैं:
भाव पक्ष की विशेषताएँ
पद्माकर की कविता में मुख्य रूप से उल्लास और आनंद का वर्णन है। श्रृंगार के वर्णन में उन्मुक्तता और खुलापन है। ब्रज मंडल में फाग के दृश्य का अद्भुत वर्णन उन्होंने किया है:"फाग की भीर अभिरन में गही गोविंदै ले गई भीतर झोरी।
माई करी मन की पद्माकर ऊपर नाई अबीर की जोरी।
छीन पितंबर कमर तेसू विदा दई मीड़ि कपोलन रोरी।
नैन नचाई कई मुस्काई लला फिर आइयो खेलन होरी।।"इसी प्रकार शीत ऋतु में सामंती दरबार का अत्यंत उद्दीपन परक चित्र उनके काव्य में देखा जा सकता है:
"गुलगुली गिल में गलीचा है गुनीजन हैं
चांदनी है चिक है चिरागन की माला है।
कहै पद्माकर जो गजक है गिजा हैं
सजी सेज है सुराही है सुरा है और प्यालिंहि है।
सिसिर के पाला को न व्यापत कसाला तिन्हैं
जिनके अधीन उदित मसाला है।"
पद्माकर के संयोग-वियोग वर्णन अधिक व्यापक है। नायिका के विरह को कवि ने प्रकृति की उदासी और हृदयहीनता के माध्यम से भी चित्रित किया है:"पावस बनाऔ तो न विरह बनाऔ
जो विरह बनाऔ तो ना पावस बनाऔ"पद्माकर ने अपने संरक्षक राजाओं की प्रशंसा में भी कवित लिखे हैं। जैसे:-
"संपत्ति सुमेर की कुबेर की जो पावै ताहि
तुरत लुटावत विलंब उर धारै ना।"किंतु ऐसे कविताओं में भाव नजर नहीं आते सिर्फ प्रशंसा करने पुरस्कार पाने की इच्छा दिखाई पड़ती है। उम्र के अंतिम पड़ाव में पद्माकर का रुझान भक्ति की तरफ भी होने लगा है और कुछ भक्ति परक रचनाएँ भी उनके द्वारा की गई। जैसे:-
"या जगजीवन को है यहै फल जो छाड़ि भजै रघुराई।"शिल्प पक्ष की विशेषताएँ
इनकी.भाषा सरस कोमल और मंजी हुई ब्रजभाषा है। इन्होंने शब्दावलियों में बिंबों का सुंदर प्रयोग किया है। इनके कविताओं में मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग भी उल्लेखनीय है। अधिकतर जगहों पर अलंकारों का सफल प्रयोग है। अनुप्रास आदि अलंकारों में नादात्मक सौंदर्य लक्षित होता है जैसे- "गोरी गरबीली तेरे गात की गुराई आगे।"
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