‘‘आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अंधा बना देगी।’’ इस कथन की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता बताइये।
27 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • कथन की प्रासंगिकता के पक्ष • निष्कर्ष |
उपर्युक्त कथन महात्मा गांधी की नीतिमीमांसा में ‘अहिंसा’ से संबंधित है। इसी प्रकार का कथन ‘बाइबिल’ में भी दिखाई पड़ता है। इस कथन का आशय यह है कि प्रतिशोध या बदले की भावना किसी समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकती है और इससे समाज में हिंसा को बढ़ावा मिलता है।
ध्यातव्य है कि हिंसा से किसी समस्या का तात्कालिक व एकपक्षीय समाधान ही हो सकता है। अगर हम हिंसा का अपने जीवन एवं समाज में उपयोग करते रहे तो समाज में एक भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति हर दूसरे व्यक्ति का शत्रु होगा। महात्मा गांधी के अनुसार ‘अहिंसा’ प्रतिशोध या बदले की भावना से बेहतर है। समाज में हिंसा को बढ़ावा देते रहे तो हिंसा की यह कड़ी कभी रुकेगी नहीं।
वर्तमान जैव, रासायनिक एवं परमाणु हथियारों के युग में महात्मा गांधी का यह कथन अत्यंत प्रासंगिक हो जाता है क्योंकि अब अगर ‘तीसरा विश्वयुद्ध’ हुआ तो यह संपूर्ण मानव सभ्यता का विनाश कर सकता है। यह विचारणीय बिंदु है कि परमाणु हथियारों का उपयोग किस प्रकार भयंकर नरसंहार को जन्म दे सकता है। हम इसे ‘हिरोशिमा’ एवं ‘नागासाकी’ में हुए परमाणु हमलों में देख सकते हैं।
वर्तमान घटनाक्रम में देख सकते हैं कि हिंसा का उपयोग किस प्रकार नई समस्याओं को जन्म दे सकता है। जैसे आतंकवाद व नक्सलवाद 20वीं सदी में प्रारंभ हुई घटनाएँ हैं और अब आतंकवाद का स्वरूप ज़्यादा व्यापक हो गया है जिसे हम पश्चिमी देशों में हुए आतंकवादी हमलों और हालिया श्रीलंका आंतकवादी हमलों के संदर्भ में समझ सकते हैं।
सार यही है कि ‘आँख के बदले में आँख’ का सिद्धांत पूरे विश्व में हिंसा को बढ़ावा दे सकता है जो समाज एवं मानव दोनों के लिये भयानक है। अत: आवश्यकता है कि हम व्यक्तियों में सहनशीलता, करुणा व दया जैसे मूल्यों का विकास करें जो मानवीय सभ्यता को आगे ले जाने में सक्षम हों, न कि पीछे धकेलने में।