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प्रश्न :
"भाषा शैली शिल्प का प्राण तत्त्व है क्योंकि कोई रचनाकार जब अपनी अनुभूतियों को व्यक्त करना चाहता है तो भाषा ही पाठक और उसके मध्य सेतु का काम करती यही कारण है कि रचनाकार भाषा में निहित शक्तियों को उभारने पर काफी ज़्यादा ध्यान देते हैं।" उपर्युक्त कथन के आधार पर महाभोज की भाषा शैली पर चर्चा कीजिये।
24 Jul, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• महाभोज की भाषा शैली की विवेचना
• निष्कर्ष
'महाभोज' मन्नू भंडारी द्वारा रचित उपन्यास है। मन्नू भंडारी की भाषा शैली कई स्तरों पर प्रयोगशीलता के निर्वाह का परिणाम है। 'महाभोज' उनकी भाषा शैली की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्रमशः हैं:
महाभोज जन जीवन के अत्यंत निकट की रचना है इसलिए इसमें प्रयुक्त भाषा में तद्भव और देशज शब्दावली का अनुपात अधिक है। लेखिका ने शब्दावली के चयन में पात्रों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि का ख्याल पूरी बारीकी के साथ रखा है। यही कारण है कि भाषा के कई तेवर महाभोज में दिखाई पड़ते हैं। जहाँ दा साहब और महेश जैसे पात्रों की भाषा में तत्समीपन और अंग्रेजी प्रधान है तो हीरा और गणेश जैसे ग्राम्य चरित्रों की भाषा में देशज और तद्भव शब्दावली का अनुपात सघन है।
महाभोज में लेखिका ने जीवन की गहरी समझ को बहुत छोटे वाक्यों में चमत्कारी ढंग से प्रस्तुत किया है। यह शैली 'सूत्र शैली' कहलाती है। इसके प्रयोग की महारत उन्हीं रचनाकारों को हासिल होती है जिनके पास जीवन की सूक्ष्म समझ और भाषा की समाहार क्षमता का अद्भुत सामंजस्य होता है। उदाहरण के तौर पर-
"आवेश राजनीति का दुश्मन है।"
"कुर्सी और इंसानियत में बैर है।"
मन्नू भंडारी ने व्यंग्य क्षमता का भी धारदार प्रयोग किया है। जब साहित्यकार खुद को सामाजिक विद्रूप को हटाने की स्थिति में नहीं पाता तो उसकी यही तिलमिलाहट पैने व्यंग्य को जन्म देती है। उदाहरण के लिये-
"राजनीति में जिन की खाल गैंडे की तरह हो गई है, वे कटते नहीं इतनी आसानी से।"
"गांधी नेहरू को देश एक क्षण के लिए भी नहीं भूलता। चप्पे-चप्पे में वह आपको विराजमान मिलेंगे, चाहे निर्जीव तस्वीरों के रूप में ही सही।"
जो रचनाएँ जनजीवन के नज़दीक होती हैं उनकी भाषा में मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग होता ही है। महाभोज में भी ऐसे ही जीवंत प्रयोग हैं। उदाहरण के तौर पर-
"मारने वाले को शह दो और मरने वाले को हमदर्दी- दोनों हाथ में लड्डू।
लेखिका ने अपनी भाषा को तराशने के लिए प्रतीकों एवं बिंबो का असरदार प्रयोग किया है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
"लावारिस लाश को गिद्ध नोच नोच कर खा जाते हैं।" (प्रतीक-भाषा)
"आवेश के मारे मुँह से थूक की छोटी-छोटी फुहारें छूटने लगी लखन के, और साँवला चेहरा एकदम बैंगनी हो गया।" (बिंब-भाषा)
अतः हम कह सकते हैं कि महाभोज की भाषा शैली इसकी प्राण तत्व है। इसमें प्रत्येक स्तरों पर त्तत्वों को उतना ही उभरा गया है जितनी ज़रूरत थी, ना उससे रत्ती भर अधिक ना उससे रत्ती भर कम।
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