निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिये:
"कला केवल उपकरण मात्र है, कला जीवन के लिये और उसकी पूर्ति में ही है। जीवन से विरक्ति और जीवन के उपकरण से अनुराग का क्या अर्थ?... किसी का जीवन अन्य की तृप्ति और जीवन की पूर्ति का साधन मात्र होकर रह जाय? वह जीवन सृष्टि में अपनी सार्थकता से, सृष्टि में नारी के जीवन की मौलिक सार्थकता से वंचित रह जाय? जैसे सेवा के साधन दास का जीवन!... भयंकर प्रवचना।"
22 Jul, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण: • संदर्भ • प्रसंग • व्याख्या |
संदर्भ: प्रस्तुत गद्यावतरण हिंदी के प्रगतिवादी उपन्यास के लेखक यशपाल द्वारा रचित प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास दिव्या से उद्धृत है। इस उपन्यास में यशपाल ने इतिहास के आवरण के भीतर मानववादी दृष्टिकोण के आधार पर नारी तथा अन्य वंचित वर्गों की पीड़ा को आवाज़ दी है।
प्रसंग: यह पंक्तियाँ उपन्यास के 'अंशुमाला' नामक खंड से ली गई है, जहाँ दिव्या रत्नप्रभा के साथ रहते हुए 'अंशुमाला' नाम से विख्यात हो चुकी है। यह पंक्तियाँ चार्वाक दर्शन के समर्थक मारीश ने दिव्या को समझाने के लिए कही है ताकि वह निराशा तथा आत्मप्रवचना की दुनिया से बाहर निकल कर जीवन को सक्रिय रूप में जीने की कोशिश करे।
व्याख्या: जब दिव्या मारिश से कहती है कि उसका जीवन कला के लिए समर्पित है, तो मारिश इस तर्क की कमज़ोरी स्पष्ट करते हुए कहता है कि कला तो स्वयं मनुष्य के जीवन के लिये एक साधन मात्र है, कोई मनुष्य किसी साधन का साधन कैसे बन सकता है? भाव यह है कि जो व्यक्ति अपने जीवन को निरर्थक मान चुका हो और सिर्फ कला के अभ्यास में लगा हो, वह तो मानव के उच्च स्थान से उतरकर वस्तु में परिणत हो जाता है क्योंकि वस्तु की तरह उसका अस्तित्व भी दूसरों के संतोष व जीवन की सार्थकता के लिए प्रयुक्त होता है। मारिश कहता है कि नारी होने के नाते दिव्या के जीवन की मूलभूत सार्थकता जीवन को जीने में, सृजन करने में है क्योंकि मनुष्य की परंपरा का विकास करने की ज़िम्मेदारी प्रकृति ने नारी को दी है। दिव्या का अभी का जीवन तो दासों के समान है, जिसका संपूर्ण अस्तित्व दूसरों की सेवा में खत्म हो जाता है। ऐसे जीवन को अच्छा कहना, उसे बदलने की कोशिश ना करना भयानक आत्मा प्रवंचना है।