केशव की संवाद योजना की विशेषताएँ बताइये।
20 Jul, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यकिसी भी वर्णनात्मक कृति में पात्रों की बातचीत के लिये संवाद या कथोपकथन शब्द प्रयुक्त होता है। यह कथा के विकास हेतु आवश्यक होता है एवं इसका उद्देश्य घटनाओं व दृश्यों में सजीवता लाना होता है।
केशवदास दरबारी कवि थे, इन्होंने कविप्रिया, रसिकाप्रिया, नखशिख जैसी रचनाएँ की किंतु रामचंद्रिका नाम की पुस्तक इन्हें अनन्य स्थान दिलाती हैं, जिसकी प्रमुख विशेषता इसकी संवाद योजना है।
हिंदी साहित्य के इतिहास में केशवदास संवाद योजना के निर्माण में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। रामचंद्रिका जैसी संवाद योजना हिंदी की किसी ओर रचना में दुर्लभ है।
केशवदास की संवाद-योजना की प्रमुख विशेषता उसमें विद्यमान वक्रोक्तियों का प्रखर स्वरूप है। रामचंद्रिका में राम-परशुराम संवाद के साथ-साथ अंगद-रावण संवाद में भी पर्याप्त व्यंग्यमयता मिलती है। रावण-अंगद संवाद का एक उदाहरण-
“राम को काम कहा? रिपु जीतहिं,
न कबै रिपु जीत्यौं कहाँ?”
लंबे प्रसंग को संवाद में अत्यंत संक्षिप्त रूप में रख देना केशवदास की निजी विशेषता मानी जाती है। रामचंद्रिका के संवादों में कहीं-कहीं ‘गागर में सागर’ वाली कहावत चरितार्थ होती है। उदाहरण के लिये दशरथ की मृत्यु, राम-लक्ष्मण-सीता का वन गमन और वन-गमन के कारण की सूचना इतनी सारी बातें केशवदास ने एक ही पंक्ति में कहलवा दी-
“मातु कहाँ नृपतात? गये सुरलोकहिं, क्यों, सुत शोक लये”
संवादों की भाषा में क्रोध व उत्साह जैसे भावों की सुंदर व्यंजना करना इनकी विशेषता है, इसके अलावा नाटकीयता भी केशव के संवादों को सुंदरता प्रदान करती है। रामचंद्रिका का कथानक संवादों के सहारे ही विकसित हुआ हैं एवं पात्रों के चरित्र का उद्घाटन भी हुआ हैं। आचार्य शुक्ल ने कहा भी है- “रामचंद्रिका में केशव को सबसे अधिक सफलता संवादों में मिली है। उनका रावण-अंगद संवाद तुलसी के संवाद से कहीं अधिक उपयुक्त एवं सुंदर है।”