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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    'भारतीय राजनीति में उतार-चढ़ाव के बावजूद राज्यसभा राजनीतिक, सामाजिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक विविधता का पोषण करने वाली एक संस्था बनी हुई है।' कथन के संदर्भ में राज्यसभा के महत्व को समझायें।

    18 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका 

    • राज्यसभा की भूमिका की विस्तृत चर्चा 

    • निष्कर्ष

    लोकतांत्रिक सरकारें शक्ति संतुलन के सिद्धांत पर आधारित हैं, लिहाजा लोकतांत्रिक संसदीय व्यवस्था में दो सदनों का होना अहम है। एक सदन लोकप्रिय इच्छा का प्रतीक (लोकसभा) होता है वहीं दूसरा सदन किसी तरह की भीड़तंत्र वाली मानसिकता को रोकने (राज्यसभा) का काम करता है। भारतीय संविधान, लोकसभा और राज्यसभा को कुछ अपवादों को छोड़कर कानून निर्माण की शक्तियों में समान अधिकार देता है।

    यह एक स्थायी सदन है अर्थात् राज्यसभा का विघटन कभी नहीं होता है। राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। जबकि राज्यसभा के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव हर दूसरे वर्ष में किया जाता है। राज्यसभा के गठन का सबसे अहम पक्ष यह था कि यह सदन राज्यों के पक्ष को मज़बूती से रखेगा। यदि लोकसभा द्वारा किसी विधेयक को जल्दबाज़ी में पारित किया गया है तो राज्यसभा उस पर व्यापक चर्चा करेगा।

    संसद का उच्च सदन, लोकसभा के निर्णयों की समीक्षा करने और सत्तापक्ष के निरंकुशतापूर्ण निर्णयों पर अंकुश लगाने में सहायता करता है। उच्च सदन शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों को एक मंच प्रदान करता है, जो सरकार की जन-कल्याण योजनाओं के माध्यम से राज्यों के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं। इस व्यवस्था को नियंत्रण और संतुलन सिद्धांत के अनुसार किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये आवश्यक माना जाता है।

    राज्यसभा की शक्तियाँ एवं कार्य

    गैर-वित्तीय विधेयकों के संदर्भ में लोकसभा की भांति राज्यसभा को भी उतनी ही शक्ति प्राप्त है। ऐसे विधेयक दोनों सदनों की सहमति के बाद ही कानून बनते हैं। धन विधेयक के मामले में राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में सीमित शक्ति प्राप्त है। इस संदर्भ में राज्यसभा को 14 दिनों के भीतर विचार करके अपनी राय लोकसभा को भेजनी होती है। संविधान संशोधन विधेयकों के संदर्भ में राज्य सभा की शक्तियाँ लोकसभा की शक्तियों के बराबर है।

    देश के संघात्मक ढाँचे को बनाए रखने के लिये राज्यसभा के पास दो विशिष्ट अधिकार हैं, जो कि लोकसभा के पास नहीं है- अनुच्छेद 249 के अंतर्गत राज्यसभा उपस्थित और मतदान करने वाले दो तिहाई सदस्यों के बहुमत से राज्य सूची में शामिल किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती है। अनुच्छेद 312 के अंतर्गत राज्यसभा उपस्थित और मतदान करने वाले दो तिहाई सदस्यों के समर्थन से कोई नई अखिल भारतीय सेवा स्थापित कर सकती है।

    आपातकाल की अवधि यदि एक माह से अधिक है और उस समय लोकसभा विघटित हो तो राज्यसभा का अनुमोदन कराया जाना ज़रूरी होता है। राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल का हिस्सा होते हैं।उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में ही लाया जाता है। राष्ट्रपति के महाभियोग तथा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और अन्य संवैधानिक पदाधिकारियों को पद से हटाने में अपनी भूमिका निभाते हैं।

    भारतीय राजनीति में उतार-चढ़ाव के बावजूद राज्यसभा राजनीतिक, सामाजिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक विविधता का पोषण करने वाली एक संस्था बनी हुई है। इसके अलावा लोक सभा के साथ यह संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य जैसे मूल्यों का ध्वजवाहक भी है।

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