भारत में व्यवसाय को सुगम बनाने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये श्रम सुधारों को ज़रुरी माना जाता है। अर्थव्यवस्था में इन सुधारों के मांग के क्रम में ही कोरोना वायरस के प्रसार ने व्यापक प्रभाव डाला है। चर्चा करें।
18 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • विकास में श्रम कानूनों की भूमिका • निष्कर्ष |
भारत में कई वर्षों से श्रम क्षेत्र में सुधारों की मांग की जाती रही है, ये मांग न सिर्फ उद्योगों की ओर से बल्कि समय-समय पर श्रमिक संगठनों की ओर से भी की जाती रही है। भारत में व्यवसाय को सुगम बनाने तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये भी श्रम सुधारों को ज़रुरी माना जाता है। अर्थव्यवस्था में इन सुधारों के मांग के क्रम में ही कोरोना वायरस के प्रसार ने व्यापक प्रभाव डाला है। वर्तमान में आर्थिक गतिविधियाँ पूरी तरह से बंद हैं। इस समय जहाँ उद्योगों के समक्ष कार्य संचालन की समस्या है तो वहीं श्रमिकों के समक्ष रोज़गार का संकट है। ऐसी स्थिति में सरकार उद्योगों का कार्य संचालन प्रारंभ करना चाहती है परंतु तमाम उद्योगपति जटिल श्रम कानूनों के कारण उद्योगों को प्रारंभ करने में सशंकित हैं। ऐसे में कई राज्यों द्वारा किये जा रहे श्रम कानूनों में बदलाव अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से सकारात्मक कदम साबित हो सकते हैं।
उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले तीन वर्षों के लिये कुछ प्रमुख श्रम कानूनों को छोड़कर लगभग 35 श्रम कानूनों के प्रावधानों से व्यवसायों को छूट देने वाले अध्यादेश को मंज़ूरी दे दी है। औद्योगिक विवादों, व्यावसायिक सुरक्षा, श्रमिकों के स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति, ट्रेड यूनियनों, अनुबंध श्रमिकों और प्रवासी मज़दूरों से संबंधित श्रम कानूनों के प्रावधान निर्धारित समय के लिये प्रचलन में नहीं रहेंगे।
हालाँकि, बंधुआ मज़दूरी, बच्चों व महिलाओं के नियोजन संबधित श्रम अधिनियम और वेतन संदाय अधिनियम से संबंधित कानूनों में कोई छूट नहीं दी जाएगी। वर्तमान स्थितियों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक गतिविधियों को प्रारंभ करना आपूर्ति श्रृंखला को निर्बाध रूप से चलाए रखने के लिये आवश्यक है, इसलिये उदारीकृत श्रम सुधारों की आवश्यकता है।
हालांकि इससे संबंधित चिंताओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता जैसे- उत्तर प्रदेश सरकार ने न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम सहित लगभग सभी श्रम कानूनों को सरसरी तौर पर निलंबित कर दिया है। इसलिये इस कदम को ‘शोषण के लिये एक सक्षम वातावरण निर्मित करने’ के रूप में देखा जाना स्वाभाविक है। श्रम कानूनों के निलंबन से मज़दूर, पूँजीपतियों पर पूरी तरह से निर्भर हो गए जिससे बंधुआ मज़दूरी के एक नए स्वरुप में प्रचलित होने की प्रबल संभावनाएँ हैं। श्रम कानूनों के निष्प्रभावी होने से मज़दूरों को मिलने वाली समस्त सुविधाएँ जैसे- भविष्य निधि, बोनस, न्यूनतम मज़दूरी, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि निष्प्रभावी हो गईं हैं। श्रम कानूनों के निष्प्रभावी होने से संगठित क्षेत्र के रोज़गार भी असंगठित क्षेत्र के रोज़गार में परिवर्तित हो जाएँगे। जिससे मज़दूरी दर में तीव्र गिरावट आएगी।
निष्कर्षतः सरकार को श्रम कानूनों में सुधार करते समय मजदूरों के हितों को भी ध्यान में रखना चाहिये ताकि उन पर इन सुधारों का प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।