गाँधी जी की स्वदेशी, स्वच्छता और सर्वोदय की अवधारणा वैश्विक महामारी COVID-19 के प्रसार को रोकने में किस प्रकार सहायक सिद्ध हो सकते हैं, मूल्यांकन करें।
17 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • गाँधी जी द्वारा प्रस्तुत विचार किस प्रकार से आज भी प्रासंगिक • निष्कर्ष |
गांधीवादी दर्शन न केवल राजनीतिक, नैतिक और धार्मिक है, बल्कि पारंपरिक और आधुनिक तथा सरल एवं जटिल भी है। यह कई पश्चिमी प्रभावों का प्रतीक है, जिनको गांधीजी ने उजागर किया था, लेकिन यह प्राचीन भारतीय संस्कृति में निहित है तथा सार्वभौमिक नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों का पालन करता है।
गांधीवादी दृष्टिकोण आदर्शवाद पर नहीं, बल्कि व्यावहारिक आदर्शवाद पर ज़ोर देती है।
गांधी जी का मानना था कि इससे स्वतंत्रता (स्वराज) को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि भारत का ब्रिटिश नियंत्रण उनके स्वदेशी उद्योगों के नियंत्रण में निहित था। स्वदेशी भारत की स्वतंत्रता की कुंजी थी और महात्मा गांधी के रचनात्मक कार्यक्रमों में चरखे द्वारा इसका प्रतिनिधित्व किया गया था।
गांधी जी न केवल विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा उनके अग्निदाह तक सीमित रखा, बल्कि उद्योग-शिल्प, भाषा, शिक्षा, वेश-भूषा आदि को स्वदेशी के रंग में रंग दिया।
परंतु स्वतंत्रता के बाद गांधी जी की मृत्यु के साथ ही उनके स्वदेशी की अवधारणा भी लुप्त होने लगी और आधुनिक भारत के मंदिरों के नाम पर ‘स्वदेशी धरती’ पर विदेशी मशीनों को लाकर बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां स्थापित की जाने लगीं।
नतीजतन, देश के तमाम हस्त उद्योग, कुटीर उद्योग लुप्त होते चले गए, घर-घर से चरखा गायब होता चला और शहरों से लेकर गाँवों तक देशी-विदेशी फैक्ट्रियों के उत्पादित माल बाज़ार में छा गए।
हस्त उद्योग, कुटीर उद्योग के लुप्त होने से भारत ने अपने विनिर्माण क्षेत्र को खो दिया।
गांधी जी ने कहा था ‘गाँव की स्वच्छता के सवाल को बहुत पहले हल कर लिया जाना चाहिये था।’गांधी जी ने स्कूली और उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में स्वच्छता को तुरंत शामिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया था। गांधीजी ने इस बात पर जोर दिया कि ग्रामीणों को अपने आसपास और गाँव को साफ रखते हुए स्वच्छता का माहौल विकसित करने की तुरंत जरूरत के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिये।
सर्वोदय ऐसे वर्गविहीन, जातिविहीन और शोषणमुक्त समाज की स्थापना करना चाहता है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति और समूह को अपने सर्वांगीण विकास का साधन और अवसर मिले।
सर्वोदय ऐसी समाज की रचना चाहता है जिसमें वर्ण, वर्ग, धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर किसी समुदाय का न तो संहार हो और न ही बहिष्कार हो।यही कारण है कि सर्वोदय आज एक समर्थ जीवन, समग्र जीवन, तथा संपूर्ण जीवन का पर्याय बन चुका है।
गांधी का स्वदेशी विचार भी प्रकृति के खिलाफ आक्रामक हुए बिना, स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के उपयोग का सुझाव देता है। उन्होंने आधुनिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की निंदा की। गांधी ने कृषि और कुटीर उद्योगों पर आधारित एक ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था का आह्वान किया। भारत के लिये गांधी की दृष्टि प्राकृतिक संसाधनों के समझदारी भरे उपयोग पर आधारित है, न कि प्रकृति, जंगलों, नदियों की सुंदरता के विनाश पर।
निष्कर्षतः महात्मा गांधी की शिक्षाएँ आज और अधिक प्रासंगिक हो गई हैं जब कि लोग अत्याधिक लालच, व्यापक स्तर पर हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन शैली का समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं।