अपवाह प्रतिरूप की संक्षेप में चर्चा करते हुए प्रायद्वीपीय भारत के अपवाह तंत्र को बताइये।
13 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
प्रश्न-विच्छेद
हल करने का दृष्टिकोण
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नदियों के उद्गम स्थान से लेकर उसके मुहाने तक नदी व उसकी सहायक नदियों द्वारा की गई रचना को अपवाह प्रतिरूप कहा जाता है। इसमें वृक्षाकार, वलयाकार, अभिकेंद्रीय, गुंबदाकृति, समानांतर प्रतिरूप आदि शामिल किये जाते हैं। ये सभी नाम नदी तथा उसकी वाहिकाओं द्वारा उसके बहाव क्षेत्र में विकसित किये गए बहाव जाल की आकृति के आधार पर दिये गए हैं।
भौगोलिक आकृतियों के आधार पर भारत की नदियों के अपवाह तंत्र को मुख्यतः दो वर्गों मे विभाजित किया गया है—
प्रायद्वीपीय भारत का पश्चिमी घाट, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों के मध्य एक प्रमुख जल विभाजक का कार्य करता है। प्रायद्वीपीय पठार का सामान्य ढाल पूर्व एवं दक्षिण-पूर्व की ओर होने के कारण प्रायद्वीपीय भारत की अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलकर बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। ये नदियाँ डेल्टा का निर्माण करती हैं।
प्रायद्वीपीय भारत की नर्मदा तथा ताप्ती नदियाँ अपवाद स्वरूप बंगाल की खाड़ी में न गिरकर अरब सागर में गिरती हैं, क्योंकि ये दोनों नदियाँ भ्रंश घाटी से होकर बहती हैं तथा ज्वारनदमुख का निर्माण करती हैं। हिमालय अपवाह तंत्र की अपेक्षा, प्रायद्वीपीय अपवाह तंत्र अधिक पुराना है। इसकी द्रोणियाँ आकार में छोटी होती हैं। दक्षिण भारत की नदियाँ मुख्यतः वृक्षाकार अपवाह तंत्र बनाती हैं तथा अपने आधार तल को प्राप्त कर चुकी हैं।
प्रायद्वीपीय भारत की नदियों को निम्न दो भागों में विभक्त किया जा सकता है—
इसके अतिरिक्त तटीय क्षेत्र में अनेक छोटी नदियाँ हैं जो पश्चिम में अरब सागर तथा पूर्व में बंगाल की खाड़ी की ओर बहती हैं। इनमें पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों में शेत्रुंजी, भद्रा, वैतरणा, कालिंदी, वेद्ति, शरावती, भरतपुझा, पेरियार, पंबा आदि हैं तथा पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ वंशधारा, पेन्नार, पलार, वैगई आदि हैं।