मैथिलीशरण गुप्त की कविता नवजागरण के मूल्यों का वहन करने में कहाँ तक सफल हो सकी है? युक्तियुक्त विचार कीजिए।
15 Jul, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • कथन के पक्ष में तर्क • कथन के पक्ष में उदाहरण • निष्कर्ष |
द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि मैथिलीशरण गुप्त का काव्य कर्म नवजागरण चेतना से स्पंदित और प्रेरित है। उन्होंने अपनी विभिन्न काव्य कृतियों में नवजागरण के जीवन मूल्यों को रचनात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करने का प्रयत्न किया है।
स्वचेतना, आत्मावलोकन, गौरवशाली अतीत का बोध, वर्तमान दुरावस्था का यथार्थ बोध, दूसरी संस्कृतियों के सार्थक मूल्यों का आत्मसातीकरण, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रवृत्ति की चेतना आदि नवजागरण के चिन्ह थे जो मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में दिखाई देते हैं।
मैथिलीशरण गुप्त की कृति 'भारत भारती' में नवजागरण की उपर्युक्त सारी विशेषताएं परिलक्षित होती हैं इस कृति में कवि की मूल चिंता ही नवजागरण चेतना का परिणाम है-
"हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी।
आओ विचारो आज मिलकर यह समस्याएँ सभी।"
इस रचना में अतीत गौरव का भाव भी बार-बार उपस्थित हुआ है। उदाहरणस्वरूप-
"संपूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषिभूमि है वह कौन भारतवर्ष है।
कवि ने इस रचना में आत्मावलोकन करते हुए भारत की तत्कालीन दुर्दशा का व्यापक चित्र खींचा है।
नवजागरण के सामाजिक-सांस्कृतिक बोध का एक महत्वपूर्ण प्रश्न तात्कालीन भारतीय समाज में स्त्रियों की हीन दशा थी। इसे लक्षित करते हुए मैथिलीशरण गुप्त ने 'यशोधरा', 'साकेत', 'हिडिंबा', 'विष्णु प्रिया' और 'द्वापर' जैसी नारी केंद्रित काव्य ग्रंथों की रचना की और नारी के महत्त्व को प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया।
हालाँकि गुप्त जी की नवजागरण चेतना की कतिपय सीमाएँ भी थी। उन पर आर्य केंद्रित और हिंदूवादी होने के आरोप लगे हैं। लेकिन यह सीमाएँ तात्कालीन नवजागरण चेतना में भी दिखाई देती है। अतः हम कह सकते हैं कि मैथिलीशरण गुप्त की कविता नवजागरण चेतना के मूल्यों का वहन करने में सफल हुई है।