हाल ही में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत कोयला क्षेत्र में किये गये प्रमुख सुधार क्या हैं? नये प्रस्तावित सुधारों को लागू करने में आने वाली चुनौतियाँ तथा उनसे संबंधित समाधानों की चर्चा करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• प्रस्तावित सुधार
• चुनौतियाँ
• समाधान
• निष्कर्ष
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हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा आत्मनिर्भर भारत अभियान को ध्यान में रखते हुए, कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक खनन को मंजूरी देने हेतु बनाई जाने वाली नीतियेां पर ज़ोर दिया गया साथ ही कोयले से गैस के निर्माण पर सरकार के द्वारा आर्थिक सहयोग की बात कही गई। सरकार द्वारा कोयले के आयात में कमी लाने तथा स्थानीय उत्पादन क्षमता में वृद्धि करने के साथ ही 50 हजार करोड़ रुपये की लागत से कोयला क्षेत्र में आधारभूत संरचना के विकास का लक्ष्य रखा गया है।
प्रस्तावित सुधार-
- निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ाकर कोयला खनन क्षेत्र में प्रतियोगिता तथा पारदर्शिता में वृद्धि करना।
- निजी कंपनियों के लिये खनन प्रक्रिया में भाग लेने के लिये नियमों में ढील के साथ कंपनियों को कोयले की खोज में शामिल करने हेतु अन्वेषण सह-उत्पादन के विकल्प की व्यवस्था।
- निर्धारित समय से पहले खनन लक्ष्य प्राप्त करने वाली कंपनियों को राजस्व हिस्सेदारी में छूट के माध्यम सेप्रोत्साहन।
- कोयला खनन क्षेत्र में ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देने के लिये खनन योजनाओं का सरलीकरण किया जाएगा।
- गैर-विद्युत उपभोक्ताओं के लिये नीलामी के समय आरक्षित मूल्यों, ऋण की शर्तों में ढील देने जैसी सुविधाएँ देने का प्रस्ताव किया गया है।
चुनौतियाँ तथा समाधान के बिंदु-
- संविधान की सातवीं अनुसूची में खनिज पदार्थों को समवर्ती सूची में रखा गया है, वर्तमान में प्रत्येक राज्य में कोयला उत्पादन तथा राजस्व निर्धारण हेतु भारी असमानता है। अत: प्रस्तावित सुधारों के बेहतर क्रियान्वयन हेतु अलग-अलग राज्यों के मानकों में समानता लाना आवश्यक है।
- वर्ष 1973 में कोयला कंपनियों के राष्ट्रीयकरण का एक बड़ा कारण श्रमिक हित थे। अत: कोयला क्षेत्र में निजी कंपनियों को बढ़ावा देते हुए सरकार को श्रमिकों के हितों को प्राथमिकता देनी होगी।
- कम लागत और उपलब्धता के हिसाब से कोयला भारत की वर्तमान ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने का एक उपयुक्त विकल्प हो सकता किंतु यह पर्यावरण प्रदूषण का कारण भी है। ऐसे में यह पेरिस समझौते तथा सतत विकास लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के विपरीत होगा।
- हाल के वर्षों में विद्युत क्षेत्र की कंपनियोें के राजस्व में गिरावट एक चिंता का विषय बना हुआ था ,किंतु COVID–19 महामारी के कारण आने वाले दिनों में अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में भी ऊर्जा की मांग में गिरावट आ सकती है, जो कोयला क्षेत्र में रूकावट का कारण भी बन सकती है।