उत्तर :
प्रश्न-विच्छेद
- महाद्वीपीय व्यवस्था को बताना है।
- इसकी असफलता के कारणों का वर्णन करना है।
हल करने का दृष्टिकोण
- प्रभावी भूमिका में नेपोलियन द्वारा इंग्लैंड को परास्त करने की योजना के बारे में बताएँ।
- तार्किक तथा संतुलित विषय-वस्तु में महाद्वीपीय व्यवस्था को स्पष्ट करें तथा इसकी असफलता के कारणों को बताएँ।
- प्रश्नानुसार संक्षिप्त एवं सारगर्भित निष्कर्ष लिखें।
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टिलसिट की संधि के पश्चात् इंग्लैंड ही फ्राँस का शत्रु बच रहा था जिसे पराजित किये बिना यूरोप की प्रभुता प्राप्त नहीं की जा सकती थी। चारों ओर से समुद्र से घिरा होने के कारण इंग्लैंड के पास अजेय सामुद्रिक बेड़ा था और फ्राँसीसी बेड़े व सेनाओं द्वारा इंग्लैंड को हराना आसान न था। लेकिन नेपोलियन को विश्वास था कि अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन इंग्लैंड को परास्त करना संभव है।
नेपोलियन जानता था कि इंग्लैंड का जीवन महाद्वीपीय व्यापार एवं वाणिज्य पर निर्भर है, अतः इंग्लैंड की आर्थिक व्यवस्था को ठप करने के उद्देश्य से जिस योजना को शुरू किया गया उसे ‘महाद्वीपीय व्यवस्था’ कहा गया। वस्तुतः यह ऐसी व्यवस्था थी, जिसके अधीन यूरोपीय महाद्वीप के देशों को नेपोलियन के आज्ञापत्र एवं आदेश मानकर इंग्लैंड का आर्थिक बहिष्कार करना था इस तरह वह इंग्लैंड की आर्थिक खुशहाली को नष्ट करके उसे अपमानजनक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिये विवश करना चाहता था।
यद्यपि महाद्वीपीय व्यवस्था नेपोलियन की अद्भुत सूझ-बूझ का परिणाम थी लेकिन उसकी यह नीति उसके व यूरोप के लिये आत्मघाती सिद्ध हुई। इसे निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत देखा जा सकता है-
- नेपोलियन की अदूरदर्शिता- दरअसल, नेपोलियन का उद्देश्य इंग्लैंड के व्यापारिक प्रभुत्व को समाप्त करके फ्राँस को यूरोप का व्यापारिक केंद्र बनाना था। जिस समय नेपोलियन ने इस व्यवस्था को लागू किया, उस समय यूरोप उसके प्रभाव क्षेत्र में था किंतु वह भूल गया कि ब्रिटेन के अपने अनेक उपनिवेश हैं, जहाँ से वह कच्चा माल मंगाता और तैयार माल बेचता था, अतः जब तक उसके दुनिया भर में फैले उपनिवेशों पर प्रतिबंध न लगा दिया जाता, तब तक इस व्यवस्था के सफल होने की आशा करना व्यर्थ था।
- इंग्लैंड का सशक्त सामुद्रिक बेड़ा- नेपोलियन द्वारा इंग्लैंड की आर्थिक नाकेबंदी के जवाब में इंग्लैड की सशक्त नौसेना ने यूरोपीय बंदरगाहों पर इतनी ज़बरदस्त नाकेबंदी की कि स्वयं यूरोप का उसके उपनिवेशों से संबंध विच्छेद हो गया। नेपोलियन का विचार था कि फ्राँस के उद्योगों से यूरोप को माल मिल जाएगा परंतु फ्राँस के उद्योग इतने विकसित नहीं थे कि वे यूरोप की आवश्यकताओं को पूरा कर पाते।
- नेपोलियन द्वारा अपने ही मित्रों को असंतुष्ट किया जाना- वस्तुतः फ्राँस के अधीनस्थ राज्यों ने बाध्य होकर महाद्वीपीय व्यवस्था का पालन किया लेकिन इसका अर्थ उनके लिये महाबलिदान और भारी परेशानी का सामना करना था जिसे अवसर मिलते ही उन्होंने त्याग दिया। साथ ही, नेपोलियन द्वारा साम्राज्यवादी विस्तार की नीति के चलते पहले पुर्तगाल फिर स्पेन और उसके बाद रूस तथा प्रशा पर आक्रमण ने उसके अपने ही मित्र राष्ट्रों में असंतुष्टि की भावना को जन्म दिया।
- नेपोलियन द्वारा इंग्लैंड को अनाज की आपूर्ति कराना- महाद्वीपीय व्यवस्था के कारण इंग्लैंड में अनाज का अभाव हो गया था परंतु नेपोलियन उसको बराबर भारी मूल्य पर (उसका धन कम करने के लिये) अनाज भेजता रहा, जो कि इस व्यवस्था की असफलता के कारणों में से एक था।
भ्रष्टाचार के कारण माल का यूरोप में लीकेज़, नेपोलियन का लगातार युद्धों में उलझे रहना तथा कुछ वस्तुओं जैसे चमड़े के जूते तथा गर्म कोट आदि के लिये फ्राँस का भी इंग्लैंड पर निर्भर होना आदि इस अव्यावहारिक योजना की असफलता के अन्य कारण थे।
इस योजना के लागू होने से नेपोलियन ने यूरोप का ही नहीं बल्कि फ्राँस के मध्य वर्ग का भी सहयोग खो दिया जिसने उसे शक्ति दी थी। इस प्रकार यह योजना नेपोलियन के पतन का कारण बनी।