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प्रश्न :
'रामचंद्रिका' की संवाद-योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी करें।
06 Jul, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• 'रामचंद्रिका' की संवाद-योजना के बारे में
• निष्कर्ष
'रामचंद्रिका' की रचना केशवदास में 1601 ईस्वी में की है। इसमें कवि ने राम कथा का वर्णन किया है। हिंदी साहित्य के इतिहास में अपनी जिन विशिष्टताओं के कारण केशवदास महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं उनमें सबसे प्रमुख 'रामचंद्रिका' की संवाद-योजना है।
'रामचंद्रिका' के प्रमुख संवादों में 'राम-परशुराम संवाद', 'राम-लक्ष्मण संवाद', 'रावण-अंगद संवाद' आदि शामिल है खास बात यह है कि 'रामचंद्रिका' का कथानक संवादों के सहारे ही विकसित हुआ है। संवादों के माध्यम से ही पात्रों के चरित्र का उद्घाटन हुआ है। यह किसी भी प्रबंध काव्य में संवादों की सफलता का चरम स्तर हो सकता है। आचार्य शुक्ल ने कहा भी है-
'रामचंद्रिका' में केशव को सबसे अधिक सफलता मिली है संवादों में।xxxx उनका 'रावण-अंगद संवाद' तुलसी के संवादों से कहीं अधिक उपयुक्त एवं सुंदर हैं।
'रामचंद्रिका' के संवादों में कहीं-कहीं 'गागर में सागर' वाली कहावत चरितार्थ हुई है। लंबे प्रसंग को संवाद में अत्यंत संक्षिप्त रूप में रख देना केशव की विशेषता है। उदाहरण के लिये दशरथ की मृत्यु, राम लक्ष्मण सीता के वन-गमन की सूचना केशवदास ने एक ही पंक्ति में कहलवा दी है-
"मातु कहाँ नृपतात? गए सुरलोकहिं, क्यों, सुत शोक लये।"
रामचंद्रिका के संवादों में वक्रोक्तियों का प्रखर स्वरूप विशेष रूप से मिलता है। राम-परशुराम संवाद तो प्रसिद्ध रहे ही हैं पर अंगद-रावण संवाद में पर्याप्त व्यंग्यात्मकता दिखती है। रावण-अंगद संवाद का एक उदाहरण दृष्टव्य है-
"राम को काम कहा? रितु जीतहिं, कौन कबै रिपु जीत्यौं कहाँ?"
फड़कती हुई सजीव भाषा में क्रोध व उत्साह जैसे भावों की सुंदर व्यंजना इन संवादों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है। राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद इस दृष्टि से बहुत सुंदर है जो ओज-गुण की दृष्टि से किसी भी अन्य कविता पर भारी पड़ता है। नाटककीयता भी केशव दास के संवादों की महत्वपूर्ण विशेषता है। नाटकों में जो प्रभाव क्षमता अभिनय द्वारा आते हैं वहीं रामचंद्रिका में सुंदर, सजीव, उत्कृष्ट संवादों द्वारा आ गई है। समग्रत: केशवदास को रामचंद्रिका की संवाद योजना में अद्वितीय सफलता प्राप्त हुई है। इन जैसा संवाद-सौष्ठठव अन्यत्र दुर्लभ है।
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