प्रयागराज शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 29 जुलाई से शुरू
  संपर्क करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण भारत में ‘रिवर्स माइग्रेशन’ की समस्या देखी गयी है यह सामान्य पलायन से किस तरह से भिन्न है? प्रवासी संकट से उत्पन्न चुनौतियों की चर्चा करते हुए स्पष्ट करें की इस प्रवासी संकट से निपटने में मनरेगा किस प्रकार से सहायक सिद्ध हो सकता है

    06 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोणः 

    • भूमिका 

    • भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष विद्यमान चुनौतियां। 

    • समस्या के समाधान में सरकार के द्वारा किये जा रहे प्रयास। 

    • निष्कर्ष।

    वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण जारी लॉकडाउन के दौरान श्रमिकों का पलायन भारी मात्रा में हुआ । लॉकडाउन के दौरान होने वाला पलायन सामान्य दिनों की अपेक्षा होने वाले पलायन से एकदम उलट है। सामान्य दिनों में हम देखते हैं की रोज़गार पाने व बेहतर जीवन जीने की आशा में गाँवों और कस्बों से महानगरों की ओर पलायन होता है परंतु इस समय महानगरों से गाँवों की ओर हो रहा पलायन चिंताज़नक स्थिति को उत्पन्न कर रहा है।

    सामान्य शब्दों में कहें तो ‘रिवर्स माइग्रेशन’ से आशय ‘महानगरों और शहरों से गाँव एवं कस्बों की ओर होने वाले पलायन से है’। बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों का गाँव की ओर प्रवासन हो रहा है। जिसका कारण लॉकडाउन के बाद ही काम-धंधा बंद होना है। इस प्रवासी संकट से निपटने के लिये, सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के रूप में मनरेगा के लिये 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड आवंटित किया है।

    चुनौतियाँ-

    • श्रमिकों के गाँवों की ओर प्रवासन से देश के बड़े औद्योगिक केंद्रों में चिंता व्याप्त है। वर्तमान में भले ही उद्योगों में काम कम हो गया है या रुक गया है परंतु लॉकडाउन समाप्त होते ही श्रमिकों की मांग में तीव्र वृद्धि होगी। श्रमिकों की पूर्ति न हो पाने से उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ेगा ।
    • पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कृषि कार्य हेतु बड़े पैमाने पर श्रमिकों की आवश्यकता पड़ती है, गाँवों की ओर प्रवासन के कारण इन राज्यों की कृषि गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हो गई हैं।
    • श्रमिकों के पलायन से रियल एस्टेट सेक्टर व्यापक रूप से प्रभावित हुआ है। भवनों का निर्माण कार्य रुक जाने से परियोजना की लागत बढ़ने की संभावना है। बड़ी संख्या में श्रमिकों के पलायन से महानगरों को प्राप्त होने वाला राजस्व भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो जाएगा।
    • गाँवों की ओर प्रवासन से अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों पर अत्यधिक आर्थिक दबाव पड़ रहा है। यह सर्वविदित है कि महानगरों में कार्य कर रहे श्रमिक अपने गृह राज्य में एक बड़ी राशि भेजते हैं, जिससे इन राज्यों को बड़ी आर्थिक सहायता प्राप्त होती थी।
    • बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्य अपेक्षाकृत रूप से औद्योगीकरण में पिछड़े हुए हैं, प्रवासन के परिणामस्वरूप इन राज्यों में रोज़गार का संकट भीषण रूप ले रहा है।
    • रोज़गार के अभाव में इन राज्यों में सामाजिक अपराधों जैसे- लूट, डकैती, भिक्षावृत्ति और देह व्यापार की घटनाओं में वृद्धि हो सकती है, जिससे राज्य की कानून व्यवस्था और छवि दोनों खराब होने की आशंका है।

    प्रवासी संकट से निपटने में मनरेगा की भूमिका को निम्न बिन्दुओं के तहत समझा जा सकता है-

    • पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा के तहत ग्रामीण परिवारों के व्यस्क युवाओं को रोज़गार का कानूनी अधिकार प्रदान किया गया है।
    • प्रावधान के मुताबिक, मनरेगा लाभार्थियों में एक-तिहाई महिलाओं का होना अनिवार्य है। साथ ही विकलांग एवं अकेली महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
    • मनरेगा कार्यक्रम के तहत प्रत्येक परिवार के अकुशल श्रम करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों के लिये 100 दिन का गारंटीयुक्त रोज़गार, दैनिक बेरोज़गारी भत्ता और परिवहन भत्ता (5 किमी. से अधिक दूरी की दशा में) का प्रावधान किया गया है। सूखाग्रस्त क्षेत्रों और जनजातीय इलाकों में मनरेगा के तहत 150 दिनों के रोज़गार का प्रावधान है।
    • इस कार्यक्रम ने ग्रामीण गरीबी को कम करने के अपने उद्देश्य की पूर्ति करते हुए निश्चित ही ग्रामीण क्षेत्र के लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने में कामयाबी हासिल की है।
    • आजीविका और सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से मनरेगा ग्रामीण गरीब महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु एक सशक्त साधन के रूप में सामने आया है। आँकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2015-16 में मनरेगा के माध्यम से उत्पन्न कुल रोज़गार में से 56 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी थी।
    • मनरेगा में कार्यरत व्यक्तियों के आयु-वार आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2017-18 के बाद 18-30 वर्ष के आयु वर्ग के श्रमिकों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।
    • मनरेगा ने आजीविका के अवसरों के सृजन के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के उत्थान में भी मदद की है। मनरेगा को 2015 में विश्व बैंक ने दुनिया के सबसे बड़े लोकनिर्माण कार्यक्रम के रूप में मान्यता दी थी।
    • मार्च 2020 में केंद्रीय वित्त मंत्री ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ राहत पैकेज जारी करते समय मनरेगा की मज़दूरी में 20 रुपए प्रतिदिन की वृद्धि करने की घोषणा की है।

    उपरोक्त के बावजूद इसमें अपर्याप्त बजट आवंटन, मज़दूरी के भुगतान में देरी, खराब मज़दूरी दर, भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं व्याप्त है जिन्हें दूर करके इस योजना को अधिक प्रभावी बनाये जाने हेतु लघु तथा दीर्घकालिक उपाय अपनाये जाने की आवश्कता है सही मायनों में तभी यह प्रवासी समस्या का समाधान प्रस्तुत करने में सक्षम बन सकेगी।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2