वर्षा और जनघनत्व के बीच एक संतुलन है, जबकि वर्तमान में जल के उपयोग एवं संरक्षण में कोई संतुलन नहीं है। उक्त विसंगति को दूर करने हेतु सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों की चर्चा कीजिए।
02 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल
हल करने का दृष्टिकोणः समझाएँ कि कैसे वर्षा और आबादी के बीच संतुलन पानी के अतार्किक उपयोग से बिगड़ गया। उसके बाद जल संसाधन के तर्कसंगत उपयोग और संरक्षण में सरकार की पहल पर ध्यान केंद्रित करें। |
जल एक चक्रीय संसाधन है जो पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। देश में एक वर्ष में वर्षण से प्राप्त कुल जल की मात्रा लगभग 4,000 घन किमी. है। धरातलीय जल और पुनःपूर्ति योग्य भौम जल से 1,869 घन किमी. जल उपलब्ध है। धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं- नदियाँ, झीलें, तलैया और तालाब। लेकिन जल के अति उपयोग तथा संरक्षण में कमी (प्रदूषण) के कारण इसका संतुलन बिगड़ गया है।
पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है, और यदि वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो जल की मांग की आपूर्ति करने में समस्या उत्पन्न होगी। वास्तव में भारत की वर्तमान में जल की मांग सिंचाई की आवश्यकताओं के लिये अधिक है जबकि औद्योगिक सेक्टर में सतही जल का केवल 2 प्रतिशत और भौम जल का 5 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जाता है।
जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता, जनसंख्या बढ़ने से दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। उपलब्ध जल संसाधन औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता और सीमित होती जा रही है।
भारत को जल-संरक्षण के लिये प्रभावशाली नीतियाँ और कानून बनाने की आवश्यकता है। कुछ नीतियाँ निम्नलिखित हैंः
निष्कर्षतः जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है और हमें न केवल अपने लिये इसकी रक्षा करनी है बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये भी इसे बचा कर रखना है। वर्तमान समय में जब भारत के साथ-साथ संपूर्ण विश्व जल संकट का सामना कर रहा है तो आवश्यक है कि इस ओर गंभीरता से ध्यान दिया जाए।
भारत में जल प्रबंधन अथवा संरक्षण संबंधी नीतियाँ मौज़ूद हैं, परंतु समस्या उन नीतियों के कार्यान्वयन के स्तर पर है। अतः नीतियों के कार्यान्वयन में मौजूद शिथिलता को दूर कर उनके बेहतर क्रियान्वयन को सुनिश्चित किया जाना चाहिये जिससे देश में जल के कुप्रबंधन की सबसे बड़ी समस्या को संबोधित किया जा सके।