‘महात्मा बुद्ध की मृत्यु के लगभग 2500 वर्षों के पश्चात् आज भी उनके विचार हमारे समाज के लिये प्रासंगिक बने हुए हैं।’ टिप्पणी करें।
01 Jul, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका। • महात्मा बुद्ध के विचार हमारे समाज के लिये प्रासंगिक कैसे बने हुए हैं? • निष्कर्ष। |
दुनिया को अपने विचारों से नया मार्ग दिखाने वाले महात्मा बुद्ध भारत के एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। वर्तमान समय में बुद्ध के स्व निर्णय के विचार का महत्त्व बढ़ जाता है क्योंकी आज व्यक्ति अपने घर, ऑफिस, कॉलेज आदि जगहों पर अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले भी स्वयं न लेकर दूसरे की सलाह पर लेता है अतः वह वस्तु बन जाता है। बुद्ध का ‘आत्म दीपो भवः’ का सिद्धांत व्यक्ति को व्यक्ति बनने पर बल देता है।
बुद्ध का मध्यम मार्ग सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना बुद्ध के समय था। उनके इन विचारों की पुष्टि इस कथन से होती है कि वीणा के तार को उतना नहीं खींचना चाहिये कि वह टूट ही जाए या फिर उतना भी उसे ढीला नहीं छोड़ा जाना चाहिये कि उससे स्वर ध्वनि ही न निकले।
दरअसल आज दुनिया में तमाम तरह के झगड़े हैं जैसे- सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद तथा जातिवाद इत्यादि। इन सारे झगड़ों के मूल में बुनियादी दार्शनिक समस्या यही है कि कोई भी व्यक्ति देश या संस्था अपने दृष्टिकोण से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इस दृष्टि से इस्लामिक स्टेट जैसे अतिवादी समूह हो या मॉब लिंचिंग विचारधारा को कट्टर रूप में स्वीकार करने वाला कोई समूह हो या अन्य समूह सभी के साथ मूल समस्या नज़रिये की ही है। महात्मा बुद्ध के मध्यम मार्ग सिद्धांत को स्वीकार करते ही हमारा नैतिक दृष्टिकोण बेहतर हो जाता है। हम यह मानने लगते हैं कि कोई भी चीज का अति होना घातक होता है। यह विचार हमें विभिन्न दृष्टिकोणों के मेल-मिलाप तथा आम सहमति प्राप्त करने की ओर ले जाता है।
महात्मा बुद्ध का यह विचार की दुःखों का मूल कारण इच्छाएँ हैं, आज के उपभोक्तावादी समाज के लिये प्रासंगिक प्रतीत होता है। दरअसल प्रत्येक इच्छाओं की संतुष्टि के लिये प्राकृतिक या सामाजिक संसधानों की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में अगर सभी व्यक्तियों के भीतर इच्छाओं की प्रबलता बढ़ जाए तो प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने लगेंगे, साथ ही सामजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना समाज और नैतिकता के लिये अनिवार्य हो जाता है। इस बात की पुष्टि हाल ही में ‘अर्थ आवर शूट डे’ के रिपोर्ट से होती है जिससे यह पता चलता है कि जो संसाधन वर्ष भर चलना चाहिये था वह आठ माह में ही समाप्त हो गये।
निष्कर्षतः प्रत्येक विचारक की तरह बुद्ध कुछ बिंदुओं पर आकर्षित करते है तो कुछ बिंदुओं पर नहीं कर पाते हैं। विवेकशीलता का लक्षण यही है कि हम अपने काम की बातें चुन लें और जो अनुपयोगी हैं, उन्हें त्याग दें। बुद्ध से जो सीखा जाना चाहिये, वह यह है कि जीवन का सार संतुलन में है, उसे किसी भी अतिवाद के रास्ते पर ले जाना गलत है। हर व्यक्ति के भीतर सृजनात्मक संभावनाएँ होती हैं, इसलिये व्यक्ति को अंधानुकरण करने के बजाय स्वयं अपना रास्ता बनाना चाहिये।