"पृथ्वीराज रासो एक हिंदी साहित्य का पहला महाकाव्य है।" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? अपने उत्तर के पक्ष में उचित तर्क दीजिये।
25 Jun, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • कथन के पक्ष में तर्क • कथन के विपक्ष तर्क • निष्कर्ष |
किसी भी रचना को महाकाव्य मानने की दो प्रकार की कसौटियाँ होती हैं- पारंपरिक एवं आधुनिक।
यदि पारंपरिक कसौटियों की बात करें तो महाकाव्य मानने के लिए रचना में निम्नलिखित गुण होने चाहिये:
यदि 'पृथ्वीराज रासो' को उपरोक्त कसौटियों पर कसें तो-
यदि आधुनिक कसौटी की बात करें तो डॉक्टर नगेंद्र ने माना है कि अब किसी रचना का महाकाव्य होना उदात्त कथानक, उदात्त चरित्र, उदात्त भाव, उदात्त कार्य तथा उदात्त शैली जैसे तत्त्वों की उपस्थिति के आधार पर तय होना चाहिए न कि परंपरागत आधारों पर।
इन लक्षणों पर कसे तो 'पृथ्वीराज रासो' का महाकाव्य तो कुछ कमज़ोर प्रतीत होता है। रचना का कथानक युद्ध और वीरता के वर्णन से भरा पड़ा है किंतु इसके लिए कोई बड़ा उद्देश्य नज़र नहीं आता है। नायक पृथ्वीराज शक्तिशाली और वीर तो है किंतु उसमें संयम और धैर्य जैसे गुणों की कमी प्रतीत होती है। उदात्त भाव की बात करें तो रचना में विद्यमान वीरता का भाव उदात्त माना जा सकता है जहाँ तक शैली का प्रश्न है छंद, अलंकार और कथानक रूढ़ि जैसे तत्वों का बेहतर प्रयोग है किंतु भाषा का व्याकरणिक पक्ष कमज़ोर है।
निष्कर्षत: हम यह कर सकते हैं कि 'पृथ्वीराज रासो' पारंपरिक कसौटियों पर तो महाकाव्य सिद्ध होता ही है, आधुनिकता कसौटियों पर भी कुछ सीमाओं के साथ इसे महाकाव्य माना जा सकता है। आचार्य शुक्ल ने 'पृथ्वीराज रासो' के महाकाव्यत्व का समर्थन करते हुए कहा है कि, "चंद हिंदी के प्रथम महा कवि माने जाते हैं और इनका पृथ्वीराज रासो हिंदी का प्रथम महाकाव्य है।"