जैन कवि हेमचंद्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
23 Jun, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
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हेमचंद्र ग्यारहवीं शताब्दी के कवि है। ये अपनी विद्या एवं पांडित्य के कारण विख्यात थे। इन्हें गुजरात के राजा सिद्धराज जयसिंह एवं उसके पश्चात कुमारपाल द्वारा सम्मानित किया गया। इन्होंने जैन मुनियों के नैतिक उपदेशों एवं शिक्षाओं को प्रसारित करने हेतु कई रचनाएँ की जिनमें से 'सिद्ध हेम शब्दानुशासन' , 'देशी नाममाला' एवं 'कुमारपाल चरित' प्रमुख हैं।
इसके अलावा इन्होंने जैन सिद्धांतों के अपवाद के रूप में वीरता एवं श्रृंगार से पूरित कविताएँ भी लिखी। वीरतापूर्ण कविता के उदाहरण के तौर पर-
"खग्ग विसाहिउ जहिं लहहुँ, पिय ताहि देसहिं जाहुँ।
रण दुब्भिक्खें भग्गाइँ, विणु जुज्झें न बलाहुँ।।"
यहाँ नायिका नायक से कहती है कि मुझे उस देश ले चलो जहाँ तलवारों का व्यवसाय होता हो। यहाँ तो युद्धों का अकाल पड़ गया है और बिना युद्ध के हम कमज़ोर हो जाएँगे।
इनकी कविता में कहीं-कहीं वीरता एवं आत्मसम्मान के भाव भी प्रकट होते हैं। जैसे-
"भल्ला हुआ जू मारिया बहिणी महारा कंतु।
लज्जेजं वयंसिअहु जइ भग्गा घर एंतु।।"
न केवल वीरता एवं आत्मसम्मान से जुड़े तत्त्व बल्कि श्रृंगार के तत्त्व भी इनकी कविताओं में दिखते हैं। जैसे-
"सिरी जरखंडी लोअडी, गलि मणियडा न बीस।
तो वि गोट्ठडा कराविआ, युद्धहे उट्ठ बईस।।"
हेमचंद्र ने व्याकरण के नियमों को भी अपनी कविताओं में स्पष्ट किया है इनकी रचना 'सिद्ध हेम शब्दनुशासन' प्राकृत-अपभ्रंश का व्याकरण है इस रचना के कारण इन्हें 'प्राकृत का पाणिनी' भी कहते हैं इनके द्वारा प्रयुक्त प्राकृत भाषा में प्राकृत की स्वाभाविक सुगंध प्रकट होती है।