‘द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् वैश्विक स्तर पर हुए बदलावों में राजनीतिक ध्रुवीकरण प्रमुख था।’ चर्चा कीजिये।
23 Jun, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् वैश्विक स्तर पर हुए बदलावों में राजनीतिक ध्रुवीकरण कहाँ-कहाँ दिखता है? • निष्कर्ष। |
1945 के बाद वैश्विक स्तर पर विभिन्न परिवर्तन दिखाई देते हैं। धुरी राष्ट्र खंडित हो चुके थे। मित्र राष्ट्र सक्षम होकर यूरोप के एकीकरण के लिये प्रयासरत थे, ऐसी स्थिति में रूस तथा अमेरिका के यूरोपीय संदर्भ में नए टकराव उत्पन्न हुए और अपने-अपने संगठन को निर्मित कर ये दो महाशक्तियों के रूप में उदित हुए।
अमेरिका में यूरोप के आर्थिक एवं सामरिक हित को देखते हुए इसके एकीकरण के लिये मार्शल योजना प्रस्तुत की, चर्चिल इसके समर्थक थे, क्योंकि ब्रिटेन अब यह स्वीकार कर चुका था कि यूरोप का विकास यूरोपीय हितों के साथ संबंधित हो। इस स्थिति में अमेरिका ब्रिटेन तथा फ्राँस वैचारिक स्तर एक साथ दिखे। इसी समय अमेरिकी नेतृत्व में पूँजीवादी ध्रुवीकरण प्रारंम्भ हुआ और बाद में नाटो की स्थापना हुई।
इसके विपरीत रूस जो द्वितीय विश्वयुद्ध में मित्र राष्ट्र के साथ था साम्यवादी विचारधारा को प्रसारित करता रहा। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद उसे यूरोप में कुछ क्षेत्र प्राप्त हुए थे इन क्षेत्रों में साम्यवाद का प्रचार पूँजीवादी विचारधारा के लिये आशंकित करने वाला था तथा नाटो के गठन में भी यह स्पष्ट उद्देश्य था कि साम्यवादी विस्तार को यूरोप में विकसित होने से रोके, इसलिये रूस में समान विचारधारा के राष्ट्रो का संगठन वारसा पैक्ट के रूप में निर्मित किया, जो दूसरे ध्रुव के रूप में विकसित हुआ।
इसके अलावा एक तीसरा समूह जो अपेक्षाकृत कम प्रभावशाली था, गुट-निरपेक्ष आंदोलन के रूप में संगठित हुआ। यह मुख्यत: भारत, मिस्त्र तथा यूगोस्लोवाकिया के नेतृत्व में गठित अल्पविकसित तथा विकासशाील राष्ट्रा का संगठन था। इसका मुख्य उद्देश्य साम्यवादी तथा पूँजीवादी देशों का विरोध न करते हुए उनसे तटस्थ रहना था तथा आवश्यकतानुरूप दोनों की ध्रुवों से अपने विकास के लिये सहायता प्राप्त करना था।
निर्ष्कषत: द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामों में ध्रुवीकरण का उदय एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। सबसे महत्त्वपूर्ण यह था, सभी विचारधाराओं के देशों के मध्य अंतर्विरोधोंको दूर करने और वैश्विक संतुलन को बनाए रखने के लिये संयुक्त संघ का गठन हुआ जो वर्तमान में भी देशों के मध्य संतुलन तथा समन्वय बनाकर अपनी सार्थकता को सिद्ध कर रहा है।