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प्रश्न :
विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारिक? सतर्क विश्लेषण कीजिये।
15 Jun, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• विद्यापति के भक्त कवि होने के पक्ष में तर्क
• विद्यापति के श्रृंगारिक कवि होने के पक्ष में तर्क
विद्यापति की प्रसिद्धि का मूल आधार उनकी रचना पदावली है। पदावली में भक्ति विषयक पद भी हैं और श्रृंगार विषयक पद भी। संभवत: पदावली के आधार पर ही विद्वानों ने यह प्रश्न उठाया कि विद्यापति भक्त कवि हैं या श्रृंगारिक?
जार्ज ग्रियर्सन, बाबू श्याम सुंदर दास, तथा बाबू ब्रजनंदन सहाय जैसे कुछ विद्वानों ने विद्यापति को भक्त कवि माना है। वहीं दूसरी ओर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, बाबू राम सक्सेना, डॉक्टर राम कुमार वर्मा और बच्चन सिंह जैसे विद्वानों ने विद्यापति को श्रृंगारिक कवि कहा है।
विद्यापति को श्रृंगारिक कवि मानने के पीछे तर्क:
- पदावली में संयोग श्रृंगार पदों की अधिकता है।
- विद्यापति शैव थे अत: यदि भक्ति करनी होती तो शिव-पार्वती की करते न कि राधा कृष्ण की।
- विद्यापति ने अपने आश्रयदाता राजा शिव सिंह की प्रशंसा एवं मनोरंजन हेतु कृष्ण का प्रतीकात्मक प्रयोग किया है जो वास्तव में शिव सिंह ही है।
- विद्यापति के काव्य में विद्यमान भक्ति तत्त्व की सबसे तीखी आलोचना आचार्य शुक्ल करते हैं और लिखते हैं कि "आध्यात्मिक रंग के चश्में आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं। उन्हें चढ़ाकर जैसे कुछ लोगों ने 'गीत-गोविंद' को आध्यात्मिक संकेत बताया है वैसे ही विद्यापति के इन पदों को भी।"
- श्रृंगार विषयक इन्हीं तर्को के आधार पर विद्यापति के काव्य को निराला 'नागिन की लहर' कहते हैं तो बच्चन सिंह 'खजुराहों की मंदिरों वाली आध्यात्मिकता' बताते हैं।
विद्यापति को भक्त कवि मानने के पीछे तर्क:
- विद्यापति के पद श्रृंगारिक या अश्लील होते तो मंदिरों में क्यों गाए जाते? इनको सुनकर चैतन्य महाप्रभु जैसे भक्त मूर्छित क्यों होते?
- परवर्ती काल में कृष्णदास, गोविंददास जैसे कवियों ने विद्यापति को भक्त कवि के रूप में ही महत्त्व दिया है।
- यदि राधा-कृष्ण के श्रृंगार का विस्तृत वर्णन कर सूर दास भक्त कवि हो सकते हैं तो विद्यापति क्यों नहीं?
- विद्यापति ने शिव स्तुति, गंगा स्तुति, काली वंदना, कृष्ण प्रार्थना जैसे भक्तीपरक पदों की भी रचना की है।
- विद्यापति को भक्त मानते हुए जार्ज ग्रियर्सन ने लिखा है "राधा जीवात्मा का प्रतीक है और कृष्ण परमात्मा के। जीवात्मा, परमात्मा से मिलने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है।"
निष्कर्ष
उपर्युक्त विश्लेषण के आलोक में यह माना जा सकता है कि विद्यापति में श्रृंगार समन्वित भक्ति है। इनके यहाँ लौकिक प्रेम ही इश्वरोन्मुख होकर कहीं-कहीं भक्ति में परिणत हो जाता है। इनकी भक्ति भावना पर अपनी पूर्ववर्ती परंपरा का प्रभाव है साथ ही, प्रेम तत्त्व का सम्मिश्रण भी है।
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