गांधी जी द्वारा प्रस्तुत नैतिक अर्थव्यवस्था तथा वर्णव्यवस्था संबंधी विचारों पर चर्चा करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• गांधी जी द्वारा प्रतिपादित नैतिक अर्थव्यवस्था का विचार
• वर्णव्यवस्था पर गांधी जी के विचार
• निष्कर्ष
|
महात्मा गांधी के अपने सर्वोदय सिद्धांत में अर्थव्यवस्था को भी नैतिक आधार देने की वकालत की है। उन्होंने कहा है कि धर्म विहीन अर्थव्यवस्था मृत देह के सामन है। यहाँ धर्म से आशय नैतिकता से है।
- नैतिक अर्थव्यवस्था की पहली शर्त है अपरिग्रह का मूल्य। व्यक्ति को अपनी आवश्यकतायएँ अत्यंत न्यून रखनी चाहिये। अन्यदायी श्रम की धारणा भी महत्त्वपूर्ण है। इसका अर्थ है कि ईमानदारी में परिश्रम किये बिना व्यक्ति को भोजन करने का नैतिक अधिकार नहीं हैं।
- गांधी जी का दावा है कि विभिन्न श्रमों का मूल्य समान होता है। बौद्धिक श्रम तथा शारीरिक श्रम की बराबर आंकना चाहिये। गांधी जी एक ऐसी अर्थव्यवस्था चाहते हैं जो सभी की आवश्यकताओं का समान रूप से ध्यान रखे।
- वर्णव्यवस्था संबंधी विचारों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि गांधी जी वर्णव्यवस्था के समर्थक थे, हालाँकि जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता का उन्होंने हमेशा कठोर विरोध किया। उनके अनुसार वर्णव्यवस्था मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं बल्कि प्राकृतिक या ईश्वरीय व्यवस्था है।
- गांधीजी के अनुसार वर्ण व्यवस्था श्रम विभाजन की प्रणाली है जो समाज में श्रम की जरूरत तथा श्रम की उपलब्धता में समन्वय करती है। गांधी जी वर्ण व्यवस्था को वंशनुगत माना है अर्थात् वो मानते हैं कि वर्ण का निर्धारण जन्म से ही होता है।
- गांधी जी स्पष्ट रूप से मानते है कि हर व्यक्ति को अपना पैतृक व्यवसाय अपनाना चाहिये। किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि वे निम्न वर्ण के व्यक्तियों को ज्ञान प्राप्ति से वंचित करते है। वे चाहते है कि ज्ञान प्राप्ति हर व्यक्ति करें किंतु आजीविका का निर्धारण अपने वर्ण के अनुसर करें।