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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    किसान आंदोलन की नींव पर ही स्वतंत्र भारत में कृषि सुधार की इमारत तैयार की जा सकी स्पष्ट कीजिये।

    30 Jun, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भारत में हुए किसान आन्दोलनों के चरण तथा विशेषताएँ ।
    • आज़ादी के बाद कृषि सुधारों में  इन आंदोलनों की क्या भूमिका रही।

    भारत में हुए किसान आंदोलनों को दो चरणों में बांटा जा सकता है- 

    1. 1857 से पूर्व व पश्चात् के आंदोलन
    2. 1930 - 40 के दशक के किसान आंदोलन

    औपनिवेशिक आर्थिक नीतियाँ, भू-राजस्व की नई प्रणाली और उपनिवेशवादी प्रशासन तथा न्यायिक व्यवस्था ने किसानों की कमर तोड़ दी। हालांकि किसानों ने देशी व विदेशी शोषण के कुचक्र को तोड़ने की कोशिश की किन्तु स्थानीय स्तर पर उनके सामूहिक संघर्ष विफल होने लगे, अंतः किसानों ने आंदोलन का सहारा लिया।

    प्रथम चरण के आंदोलनों में नील, पाबना, दक्कन आदि प्रसिद्ध किसान आंदोलन रहे इन्हें पूर्ण सफलता तो नहीं मिली किन्तु इन्होंने 1930-40 के दशक में शुरू होने वाले अखिल भारतीय स्तर के आंदोलनों की नींव अवश्य रख दी।

    1929-30 में विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से कृषि उपज की कीमतें गिर गईं और भारी कर लगाए गए। साथ ही औद्योगिक उत्पादन में भी गिरावट आई, लेकिन उतनी नहीं जितनी खेती की पैदावार में देखी गई।

    राष्ट्रीय असंतोष के इस माहौल में सविनय अवज्ञा आंदोलन में गांधी जी ने कर न देने का आह्वाहन किया। 1934 में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ और 1937-1939 के मध्य किसान आंदोलन अपने उत्कर्ष पर था। कांग्रेस द्वारा गठित सरकारों ने कृषि में सुधारों के लिये ऋण में राहत देने के लिये, मंदी के दौरान जो किसान भूमिहीन हो गए थे उन्हें उनकी ज़मीन वापस लौटाने की मांग की।

    बिहार में सहजानंद सरस्वती की प्रांतीय किसान सभा ने 1935 में ज़मीदारी उन्मूलन का प्रस्ताव पारित किया। इसके अतिरिक्त दूसरी मांग रखी कि गैर कानूनी वसूलियों और काश्तकारों की बेदखली का अंत तथा काश्तकारों की बेदखली को समाप्त कर जमीनों की वापसी।इसके अतिरिक्त बंधुआ मजदूरी के खिलाफ भी आंदोलन चला।

    उपरोक्त सभी आंदोलनों का तात्कालिक प्रभाव तो क्षीण रहा किंतु आज़ादी के बाद भारत में कृषि सुधारों को प्राथमिक श्रेणी में रखा गया। उदाहरण- ज़मीदारी उन्मूलन किसी खास संघर्ष का सीधा नतीजा नहीं था किंतु किसान आंदोलन की मांगों ने इसे लोकप्रिय बना दिया।

    आज़ादी के बाद भी कृषक आंदोलनों की मांगों को आधार बनाते हुए भूमि सुधार कार्यक्रम चलाए गए तथा गैर कानूनी या सामंती वसूलियों और बेगार की समाप्ति, ज़मींदार तथा उनके आदमियों के द्वारा किये जाने वाले  अत्याचारों की समाप्ति, ऋण बोझ में कमी, गैर कानूनी या अनुचित तरीकों से ली गई भूमि की वापसी, काश्तकारों की सुरक्षा इत्यादि पर कार्य किया गया।

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