“यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है परंतु इसका दूसरा पहलू यह भी है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद का झुकाव केंद्र की ओर अधिक है, यह ऐसा लक्षण माना जाता है जो परिसंवाद की संकल्पना के विरोध में है।” चर्चा कीजिये।
09 Jun, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • कथन के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क • निष्कर्ष |
भारतीय संविधान के अनुच्छेद एक (1) में भारत को राज्यों का संघ (Union) कहा गया है। केशवानंद भारतीवाद तथा एस. आर. बोम्मईवाद में उच्चतम न्यायालय ने इस संघीय व्यवस्था की आधारिक संरचना का हिस्सा माना है। भारत में संघवाद के प्रमुख लक्षण जैसे-
केंद्र के पास राज्यों की अपेक्षा अधिक शक्ति है जैसे- विधायी तथा वित्तीय शक्तियाँ, केंद्र की तरफ से नियुक्त नौकरशाही, समवर्ती सूची के विषय पर संघ कानून को प्राथमिकता, अनुच्छेद- 353, 356, 360, 365 आदि के माध्यम से केंद्र को विशेष शक्ति इत्यादि।
भारत में इस अर्द्धसंघीय व्यवस्था को अपनाए जाने के पीछे ऐतिहासिक कारक के साथ-साथ भारत की राजनीतिक संरचना, विस्तृत भूगोल, सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता, विकासकारी प्रवृत्तियों पर रोक लगाना, सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन लाना, देश की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का समाधान करना आदि बातें भी शामिल है।
परंतु अब आज़ादी के इतने वर्षों बाद जब विखंडनकारी प्रवृत्तियाँ लगभग समाप्त हो चुकी है। अब राज्य अधिक से अधिक अधिकारों की मांग कर रहे हैं, ताकि विकास संबंधित जनता की बढ़ती आकांक्षाओं की पूर्ति की जा सके, वैश्वीकरण का लाभ सब तक पहुँच सके तथ पर्यावरण की समस्याओं से लड़ा जा सकें। अत: केंद्र की भूमिका एक समन्वयकारी की हो तो बेहतर है। योजना आयोग की समाप्ति, नीति आयोग का गठन, 14वें वित्त आयोग की सिफारिश का लागू होना भारत में संघवाद की सहयोगी प्रवृत्ति की मज़बूती के लक्षण है।