हिन्दी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा में जॉर्ज ग्रियर्सन के योगदान की विवेचना कीजिये।
08 Jun, 2020 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • हिन्दी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा में जॉर्ज ग्रियर्सन का योगदान • जॉर्ज ग्रियर्सन के साहित्येतिहास लेखन की सीमाएँ • निष्कर्ष |
हिन्दी साहित्येतिहास लेखन की परंपरा का प्रथम परिपक्व प्रयास जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा किया गया है। इन्होने अपनी पुस्तक 'द मॉडर्न लिटरेचर ऑफ़ नदर्न हिंदुस्तान' में युगीन प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए काल विभाजन एवं नामकरण का प्रथम गंभीर प्रयास किया। ग्रियर्सन ने कालक्रमनुसार वर्णन करते हुए कवियों एवं उनकी रचनाओं के मूल्यांकन का प्रयास किया। इन्होने साहित्येतिहास लेखन के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए संस्कृत, प्राकृत, फारसी को अलग-अलग भाषा कहा एवं तथ्यों के स्रोत का भी उल्लेख किया। इन्होने भक्ति काल को हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जो आज भी मान्य है।
सीमाएँ
ग्रियर्सन द्वारा सहित्येतिहास के काल विभाजन एवं नामकरण में यादृच्छिकता की प्रधानता रही है। उन्होंने व्यक्तिगत एवं राजनीतिक आधार पर नामकरण किया है जैसे - विक्टोरिया शासन में हिंदुस्तान, कंपनी के शासन में हिंदुस्तान आदि। भाषाविद् होते हुए भी उन्होंने उर्दू को एक विदेशी भाषा माना जबकि भाषा विज्ञान की दृष्टि से यह एक हिन्दुस्तानी भाषा है।
साथ ही इनके सहित्येतिहास लेखन पर ब्रिटिश प्रभाव परिलक्षित किया का सकता है, जैसे इन्होंने भक्ति काल के उदय पर ईसाइयत का प्रभाव माना जबकि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, भक्ति साहित्य भारतीय परंपरा का स्वत: स्फूर्त विकास था। इन्होंने विद्यापति की घोर श्रृंगारिक कविताओं को भी भक्तिपरक माना जबकि विद्वानों में इस बात पर मतैक्यता नहीं है।
निष्कर्ष
निश्चित रूप से ग्रियर्सन का इतिहास लेखन सीमाओं से परे नहीं था किंतु ग्रियर्सन की उपलब्धि इस बात में निहित है कि काल विभाजन व नामकरण का गंभीर प्रयास उनके द्वारा किया गया साथ ही हिन्दी सहित्येतिहास लेखन परंपरा को एक दिशा अवश्य मिली।