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प्रश्न :
‘‘धर्म विहीन राजनीति मृत देह के समान है जिसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए’’ कथन के संदर्भ में गांधी जी के धर्म तथा राजनीति से संबंधित विचारों पर प्रकाश डालें।
08 Jun, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• उपरोक्त कथन के आलोक में गांधी जी के धर्म एवं राजनीति से संबंधित बिन्दुओं का उल्लेख
• निष्कर्ष
महात्मा गांधी नव्य वेदांत दर्शन की परंपरा में आने वाले प्रमुख विचारक हैं। नव्य वेदांत जगत को श्रम या असार मानने के स्थान पर ईश्वर की अभिव्यक्ति मानता है। प्रकृति के कण-कण में ईश्वर का वास है इस रूप में प्रत्येक मानव में भी ईश्वर है। इसलिये नव्य वेदांत के अधिकांश विचारक मानव सेवा को ही प्रभु सेवा मानते हैं।
धर्म तथा राजनीति का संबंध:
- महात्मा गांधी ने धर्म तथा राजनीति के संबंध में व्याख्यायित करते हुए कहा है कि ‘‘धर्म विहीन राजनीति मृत देह के समान है जिसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए।’’
- गांधी जी ने धर्म शब्द को शब्द को अलग-अलग संदर्भो में दो तरीके से प्रयुक्त किया है। कहीं-कहीं वे धर्म को मजहब या पंथ के ही अर्थ में लेते हैं, किन्तु दार्शनिक स्तर पर वे धर्म का अर्थ स्व-कर्त्तव्य पालन में लेते हैं, जैसा भारतीय पंरपरा में मनु संहिता, महाभारत, रामचरित मानस आदि ग्रंथों में भी है।
- गांधी जी धर्म के इसी अर्थ को राजनीतिक में काम्य मानते हैं। इसका अर्थ हुआ कि राजनेताओं पर यह नैतिक ज़िम्मेदारी है कि वे अपने स्वार्थ से मुक्त होकर सिर्फ कर्तव्य पालन के भाव से प्रशासन चलाए और समाज को अधिकाधिक लाभ प्रदान करें। इस बिंदु पर वे प्लेटों के दार्शनिक राजा के सिद्धांत के नज़दीक दिखाई पड़ते हैं क्योंकि उसे भी स्वार्थ से मुक्त रहते हुए अपने विवेक के अनुसार सुशासन चलाना है। कौटिल्य ने अपने सप्तांग सिद्धांत में स्वामी अर्थात राजा को ऐसा ही शासन चलाने की सलाह दी है।
- इसका अर्थ यह नहीं है कि गांधी जी सांप्रदायिक राजनीति का समर्थन करते हैं। मज़हब वाले अर्थ में वे धर्म को राजनीति का हिस्सा नहीं मानते।
- वे ‘सर्व धर्म समभाव’ का समर्थन करते हैं, जिसका अर्थ है कि राज्य को धर्मों से दूर नहीं भागना चाहिये बल्कि सभी धर्मों को बराबर मानना चाहिए।
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