भारत में बंधुआ मज़दूरी के प्रचलन के कारणों पर प्रकाश डालते हुए, इसे समाप्त करने में विद्यमान चुनौतियों को रेखांकित करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• भूमिका
• भारत में बंधुआ मज़दूरी के प्रचलन के कारण
• बंधुआ मज़दूरी को समाप्त करने में विद्यमान चुनौतियाँ
• निष्कर्ष
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वैश्विक दासता सूचकांक (GSI), 20018 के आकलन के अनुसार, 2016 में भारत में लगभग 80 लाख लोग आधुनिक दासता का जीवन जी रहे थे। भारत में आधुनिक दासता के प्रचलन के आलोक में देखें तो प्रत्येक एक हज़ार लोगों में 6.1 लोग इससे पीड़ित थे।
भारत में बंधुआ मज़दूरी की प्रचलन के कारण-
- ILO की फोर्स्ड लेबर कन्वेशन, 1930 के अनुसार बाध्ययात्मक श्रम का अर्थ अर्थ-दंड अथवा ज़ुर्माना का भय दिखाकर या व्यक्ति की इच्छा या सहमति के विरूद्ध करवाए जाने वाले सभी कार्यों तथा सेवाओं से है। इसके प्रमुख कारण निम्नवत हैं-
- आर्थिक कारण: किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी या बलात् श्रम की ओर धकेलने के कारणों में भूमिहीनता, बेरोज़गारी तथा निर्धनता प्रमुख हैं, जो अन्य कारणों के साथ मिलकर लोगों को क़र्ज़ या ऋण के जाल में उलझा देते हैं जिससे वे बंधुआ मजदूरी की ओर प्रवृत्त होने को विवश हो जाते हैं।
- सामाजिक कारण: जातिगत संस्थाना, ऋण दुष्चक्र का निर्माण करने वाली विवाह जैसी सामाजिक प्रथाओं तथा परम्पराओं को इस प्रथा की उत्पति एवं उसके सतत रूप से जारी रहने के लिये उत्तरदायी माना जा सकता है।
- बंधुआ मज़दूरी प्रथा को जारी रखने के लिए उत्तरदायी अन्य कारणों में अप्रावासन, उद्योगों की विभिन्न क्षेत्रों में उपस्थिति, श्रम-गहन पुरानी प्रौद्योगिकी इत्यादि सम्मिलित है।
बंधुआ मज़दूरी को समाप्त करने में विद्यमान चुनौतियाँ:
- बंधुआ मज़दूरी प्रणाली का कोई सर्वेक्षण नहीं है।
- NCRB के आँकड़ों के अनुसार पुलिस द्वारा ऐसे मामलों की रिपोर्ट नहीं दर्ज की जाती।
- त्रुटिपूर्ण पुनर्वास व्यवस्था: तात्कालिक राहत के रूप में केवल आंशिक हर्जाना ही दिया जाता है जबकि शेष राशि दोष सिद्ध होने पर दी जाती है। न्यायिक व्यवस्था की निम्नस्तरीय कार्य-प्रणाली को देखते हुए, दोषसिद्धि में होने वाली विलंब के कारण भी लोग ऐसे मामलों में रिपोर्ट दर्ज करवाने में कतराते हैं।
- पीड़ितों के बचाव तथा मुख्यधारा में उनके पुन: एकीकरण में व्यावहारिक चुनौतियों या बाधाओं की संपूर्ण श्रृंखला विद्यमान है।
- तस्करी या बंधुआ मज़दूरी को अपराध घोषित करने वाले कानूनों को लागू करने में आने वाली मुख्य बाधा भारत के विभिन्न राज्यों में जांच तथा अभियोजन के लिए एकीकृत कानून प्रत्यावर्तन प्रणालियों का अभाव भी है।