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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    अहिंसा एवं अपरिग्रह के संबंध में गांधी जी के विचार पर प्रकाश डालें।

    02 Jun, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • अहिंसा एवं अपरिग्रह के संबंध में गांधी जी के विचार

    • निष्कर्ष

    महात्मा गांधी नव्य वेदांती विचारधारा के प्रमुख विचारक थे, जिनका मानना था कि ईश्वर का वास कण-कण में है। अत: प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर का वास है, मानव सेवा ही ईश्वर सेवा है। महात्मा गांधी पर सर्वाधिक प्रभाव उपनिषद दर्शन तथा गीता का है। जॉन रस्किन की ‘अनटू दिस लास्ट’ का प्रभाव उनके हिंद स्वराज में देखा जा सकता है। गांधी जी ने पश्चिमी धर्मों तथा दर्शन से भी बहुत कुछ सीखा। ईसा मसीह से उन्होंने ‘करुणा’ का विचार लिया।

    अहिंसा

    महात्मा गांधी ने अहिंसा की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई-

    • अहिंसा सिर्फ आदर्श नहीं बल्कि मानव जाति का प्राकृतिक नियम है।
    • अहिंसा के पूर्ण पालन के लिये ईश्वर में अटूट विश्वास जरूरी है।
    • अहिंसा अव्यावहारिक नहीं है बल्कि यह एकमात्र व्यावहारिक मार्ग है।

    गांधी की अहिंसा जैनों की अहिंसा की तुलना में लचीली तथा व्यावहारिक है। उन्होंने खुद स्पष्ट किया है कि किन परिस्थितियों में अहिंसा के नियम का उल्लंघन किया जाना उचित है-

    • अगर कोई प्राणी असहनीय दर्द झेल रहा हो और उसकी मुक्ति का कोई और रास्ता न हो तो उसके जीवन को समाप्त कर देना उचित है। लेकिन ऐसा सिर्फ उस प्राणी के हित में किया जाए, किसी अन्य के हित में नहीं।
    • किसी प्राणी के नैतिक, आध्यात्मिक या भौतिक विकास के लिये उसे कष्ट पहुँचाना अहिंसा का उल्लंघन नहीं है।

    अपरिग्रह

    • अपरिग्रह का साधारण अर्थ है एकत्रित न करना किंतु गांधी जी ने इसका व्यापक अर्थ लिया। गांधीजी के लिये अपरिग्रह का अर्थ है, निरंतर श्रम करते हुए ही समाज से कुछ लेना। बिना श्रम किये किसी चीज पर हक न जताना।
    • जीवन की अनिवार्यताओं के अलावा जो कुछ भी है उसका प्रयोग समाज हित में करना। यही ट्रस्टीशिप या न्यासिता का सिद्धांत भी है। इसका अर्थ है कि पूंजीपति से धन छीनने की आवश्यकता नहीं है बल्कि उसका हृदय परिवर्तन करना चाहिये ताकि वह समझ सके कि अपनी जरूरत भर के संसाधन खर्च करने के बाद उसे शेष सारा धन जरूरतमंद के लिये खर्च करना चाहिये।
    • मार्क्स तथा गांधी में इस बिंदु पर गहरा अंतर है। भौतिकवादी होने के कारण मार्क्स हृदय परिवर्तन को संभव नहीं मानते। उनका दावा है कि समानता लाने का एकमात्र तरीका अमीरों की संपत्ति छीनना और संपूर्ण संपत्ति को सामाजिक संपत्ति घोषित कर देना है।

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