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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    संविधान में संशोधन करने के संसद के स्वैच्छिक अधिकार पर भारत का उच्चतम न्यायालय नियंत्रण रखता है। समालोचनात्मक विवेचना कीजिये।

    29 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • संविधान संशोधन के अधिकार पर उच्चतम न्यायलय की भूमिका

    • निष्कर्ष

    भारत का संविधान कठोर तथा लचीली दोनों प्रकार की विशेषताओं का सम्मिश्रण है। संविधान के भाग-20 के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है। संसद द्वारा संविधान में संशोधन की तीन पद्धतियाँ हैं-

    • साधारण बहुमत द्वारा
    • विशेष बहुमत द्वारा
    • विशेष बहुमत तथा आधे राज्यों की स्वीकृति द्वारा

    संविधान में संशोधन ने संबंधित संसद के अधिकार एवं न्यायालय के अधिकारों के मध्य एक सामंजस्य बनाने का प्रयास हमारे संविधान में पहले से उपलब्ध है। राज्य के प्रत्येक अंग पर कुछ मर्यादाएँ आरोपित है, जिनके उल्लंघन की दशा में न्यायालय विधियों को शून्य घोषित कर सकता है। जैसे कि अनुच्छेद-13 के आलोक में किसी भी विधि को निरस्त किया जा सकता है, जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करें।

    उच्चतम न्यायालय ने संसद तथा न्यायालय के मध्य परस्पर टकराव से बचने के लिये संविधान के ‘मौलिक ढाँचे’ का सिद्धांत भी पारित किया और स्पष्ट किया कि संसद संविधान में ऐसा कोई संशोधन नहीं कर सकती, जो संविधान के ‘मौलिक ढाँचे’ को प्रतिकूलत: प्रभावित करता हो। साथ ही मौलिक ही न्यायिक पुनरावलोकन के अधिकार के तहत न्यायपालिका संसद द्वारा पारित संविधान संशोधन को जाँचने हेतु भी स्वतंत्र है।

    संसद ने इस मूल ढाँचे के सिद्धांत की प्रतिक्रिया में 42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम पारित कर यह पारित कर दिया कि संसद की विधायी शक्ति की कोई सीमा नहीं है और किसी भी संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। इस प्रावधान को उच्चतम न्यायालय ने मिनर्वा मित्र मामले में अमान्य कर दिया, क्योंकि इसमें न्यायिक समीक्षा को स्थान नहीं दिया गया था, जो कि संविधान की मूल विशेषता है।

    इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा एंव संविधान के मूल ढाँचे की संकल्पना के आधार पर संसद पर युक्तिपूर्ण निर्बंधन आरोपित करता है। इस मूल ढाँचे के अंतर्गत संसदीय तथा लोकतांत्रिक प्रणालियों के ‘मूलभूत लक्षण’ विद्यमान होते हैं, जिनकी व्याख्या समय-समय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा की जाती है। इनमें से कुछ हैं, संसदीय प्रणाली, संविधान की सर्वोच्चता, शक्तियों का पृथक्करण, न्यायिक समीक्षा आदि।

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