यद्यपि सामाजिक न्याय की स्थापना में विधिक न्याय ने अहम भूमिका निभाई है तथापि यह भी सत्य है कि सामाजिक न्याय को केवल विधिक उपायों द्वारा प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसके लिये समाज की सषुप्त चेतना को जाग्रत करना भी आवश्यक है। टिप्पणी करें।
29 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय
हल करने का दृष्टिकोण: • सामाजिक न्याय में विधिक उपाय की भूमिका • कथन के समर्थन में सोदाहरण तर्क • निष्कर्ष |
न्याय को किसी विधि अथवा नियम के द्वारा स्थापित करने की प्रक्रिया विधिक न्याय कहलाती है। न्याय एक ऐसी अवधारणा है जिसके माध्यम से समाज में समानता तथा एकता के मूल्यों के साथ-साथ व्यक्ति की गरिमा को स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। वहीं सामाजिक न्याय से आशय एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था पर जोर देने से है जो समाज के विभिन्न वर्गों के लिये सुविधापूर्ण अधिकार एवं सुरक्षा उपलब्ध करवाता है। सामाजिक न्याय की अवधारणा में आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय भी निहित है।
सामाजिक न्याय की स्थापना में विधिक न्याय ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। भारतीय संविधान में निहित मूल अधिकारों में अनुच्छेद-14, 15, 16, 17, 18 तथा नीति-निर्देशक तत्त्वों में अनुच्छेद-41, 42, 43 तथा 46 के द्वारा सामाजिक न्याय की स्थापना के प्रयास किये गए हैं तथा समय-समय पर संसद ने विधि द्वारा अनेक अधिनियमों की सहायता से सामाजिक न्याय की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
वस्तुत: विधि द्वारा स्थापित न्याय के माध्यम से व्यक्ति को नकारात्मक विभेद करने से रोका जा सकता है, किंतु सामाजिक न्याय के मूल्यों की स्वीकार्यता हेतु प्रेरित नहीं किया जा सकता। विधि अन्याय को कम तो कर सकती है, किंतु उसे नैतिक व्यवहार में नहीं ला सकती जिसके लिये जनचेतना को मानवाधिकार के मूल्यों से जाग्रत करना ही एकमात्र विकल्प है। जन-जागरूकता के द्वारा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को स्थापित किया जा सकता है। शिक्षा का सभी वर्गों एवं पंथों तक विस्तार इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता है। इसलिये शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी नैतिक मूल्यों की शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक न्याय संबंधी मूल्यों की भी सिखाए जाने की आवश्यकता है ताकि समतामूल समाज की स्थापना की जा सके।