जॉन रॉल्स की नीतिमीमांसा को मानने से किस प्रकार एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना संभव है। टिप्पणी करें।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• कथन के समर्थन में तर्क
• निष्कर्ष
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जॉन रॉल्स ने अपनी पुस्तक ‘अ थ्योरी ऑफ जस्टिस’ में न्याय के सिद्धांत को प्रस्तुत किया है। रॉल्स के सिद्धांत का मुख्य बल ‘समानता की जरूरत’ पर है।
इसके लिये रॉल्स एक काल्पनिक दुनिया गढ़ते हैं जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी पहचान में भी अनभिज्ञ है। इसे रॉल्स ‘अज्ञान का पर्दा’ (Veil of Ignorance) कहते हैं। इस स्थिति में लोग अहंवादी नहीं होते तथा उनमें न्याय की भावना होती है।
रॉल्स ने कुछ सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं जिन्हें उसी प्राथमिकता के साथ मानने पर एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हो सकेगी-
- सबसे वंचित वर्ग को लाभ मिले।
- निष्पक्ष समानता व अवसर परिस्थितियों के तहत सभी के लिये पद तथा हैसियत प्राप्त करने के मौके खुल रहें।
- रॉल्स के सिद्धांत को सार रूप में कहें तो वह एक ऐसी व्यवस्था की बात करता है जहाँ समानता का नियम लागू होता हो तथा इसका अतिव्रमण तभी किया जाता हो, जब किसी वंचित के हित संवर्द्धन हेतु ऐसा करना अनिवार्य हो।
- भारतीय संविधान सामाजिक न्याय की जिस पद्धति को स्वीकार करता है वह रॉल्स के सिद्धांत के काफी निकट है। भारतीय संविधान में वंचितों को मुख्य धारा में लाने के लिये जिस ‘आरक्षण’ की व्यवस्था की गई है वह समानता के कुछ मानकों से अलग तो है, किंतु समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों को लाभ पहुँचाने वाली है।
- यह सबके लिये ‘समान स्वतंत्रता’ उपलब्ध कराने का एक प्रयास है तो साथ ही यह उन परिस्थितियों के निर्माण में भी सहायक है जहाँ सभी पदों व स्थितियों के लिये अवसर की समता सुनिश्चित होती है।
- इसके अतिरिक्त भारत के संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व सहित सामाजिक न्याय की बात, सकारात्मक भेदभाव, जाति प्रथा का निषेध इत्यादि सभी प्रयास रॉल्स के सिद्धांत के निकट है।
- हालाँकि, रॉल्स जिस पहचानरहित वर्ग की बात करते हैं वह भारत जैसे विविधतामूलक देश में संभव नहीं है। साथ ही, एक स्तर के बाद रॉल्स कुछ विषमताओं को स्वीकार कर लेते हैं जबकि भारतीय संविधान इसके उन्मूलन की बात करता है।