‘सामाजिक स्तरीकरण सामाजिक सशक्तीकरण की राह में बाधक है।’ टिप्पणी करें।
28 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 सामाजिक न्याय
हल करने का दृष्टिकोण : • भूमिका • कथन के समर्थन में तर्क • उदाहरण • निष्कर्ष |
किसी भी समाज के समावेशी विकास की पहली शर्त होती है कि समाज में व्याप्त असमानता को कम किया जाए तथा समाज के सभी वर्गों की भागीदारी, जवाबदेही तथा निर्णयात्मक क्षमता को प्रभावी बताया जाए। भारत के संदर्भ में देखें तो भारतीय समाज में व्याप्त असमानता को समाप्त करने का प्रयास 19वीं शताब्दी के सामाजिक-आर्थिक सुधार आंदोलन से ही प्रारंभ हुआ, जिसे आज़ादी के बाद संवैधानिक तथा विधिक प्रावधानों के द्वारा और अधिक परिणामोन्मुखी बनाने का प्रयास किया गया।
समाज में असमानता का ही एक रूप है- सामाजिक स्तरीकरण तथा इस सामाजिक स्तरीकरण से व्युत्पन्न नियोग्यताओं को समाप्त करने की प्रक्रिया है- सामाजिक सशक्तीकरण/सामाजिक सशक्तीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से समाज में सामाजिक, शैक्षिक, राजनीतिक तथा आर्थिक रूप से वंचित लोगों की शक्ति एवं विश्वास में वृद्धि का प्रयास किया जाता है। इस प्रक्रिया से लोकतांत्रिक मूल्यों, जैसे समानता, स्वतंत्रता, न्याय तथा बंधुत्व की वास्तविक रूप में स्थापना होती है, क्योंकि इसके द्वारा समाज के कमजोर वर्गों, जैसे- महिलाओं, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों, ट्रांसजेंडरों की क्षमताओं का उन्नयन होता है, उनकी भागीदारी को बढ़ाया जाता है तथा उनके प्रति सामाजिक भेदभाव एवं पूर्वाग्रहों का शमन किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक सशक्तीकरण की आवश्यकता का मूल कारण ही सामाजिक स्तरीकरण है। सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के तहत समाज के लोगों का वर्गीकरण करते हुए अधिव्रमित संरचना में श्रेणीबद्ध कर दिया जाता है जिससे समाज के कमजोर लोगों की सामाजिक संसाधनों, अवसरों तथा निर्णयन प्रव्रिया तक पहुँच सीमित होती है। वास्तव में सामाजिक स्तरीकरण की प्रव्रिया ‘प्रदत्त’ समाजिक स्थिति पर आधारित है। सामाजिक स्तरीकरण के वर्तमान में कई आधार है, जैसे- लिंग, धर्म, नृजातीयता, भाषा, जाति तथा विकलांगता आदि।
निष्कर्षत: सामाजिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करने के लिये सामाजिक स्तरीकरण को समाप्त करना आवश्यक है।