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प्रश्न :
‘‘शत्रुओं पर विजय पाने वाले की अपेक्षा में ऐसे व्यक्ति को अधिक साहसी मानता हूँ जो अपनी इच्छाओं का दमन कर सके।’’ विश्लेषण करें।
26 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• संदर्भ सहित कथन के समर्थन में तर्क
• निष्कर्ष
उपर्युक्त कथन में अरस्तू ने आत्म तथा बाह्य द्वंद्व को दर्शाने का प्रयास किया है। बाह्य अर्थात् शत्रु पर विजय प्राप्त करना अपेक्षाकृत आसान है, क्योंकि यहाँ स्पष्टत: दूसरा पक्ष प्रत्यक्ष है, तथा इसकी पहचान स्पष्ट है, तथा सामान्य अर्थ में कहें तो यह पक्ष स्पष्ट है वहीं दूसरी ओर एक ही पक्ष है, अपने विरुद्ध ही लड़ाई है पहचान में न आने वाली असंख्य इच्छाएँ हैं। अत: स्वाभाविक रूप से अपने विरुद्ध विजय प्राप्त करना शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की अपेक्षा अधिक कठिन है।
इच्छाओं का अनंत विस्तार तथा अनियंत्रित स्वरूप तमाम बुराइयों को जन्म देता है। जब धन की इच्छा बेलगाम हो जाती है तो व्यक्ति भ्रष्टाचारी हो जाता है, जब शासन की इच्छा अनियंत्रित हो जाती है तो व्यक्ति तानाशाह हो जाता है, जब काम की इच्छा विकृत हो जाती है तो बलात्कार जैसा अपराध उत्पन्न होता है, जब विकसित होने की इच्छा सनक में तब्दील हो जाती है तब पर्यावरण का विनाश होता है अर्थात् इच्छाओं का गुलाम व्यक्ति तमाम अनैतिक कार्य करने के लिये उत्प्रेरित होता है। वर्तमान भौतिकवादी युग में तो इच्छाओं की गुलामी और भी सघन है। इसलिये इच्छाओं पर विजय पाना निश्चित ही साहस का काम है।
इच्छाओं की दमन की बात अरस्तु के साथ ही भारत में गौतम बुद्ध और गांधी ने भी की। बुद्ध का मानना था कि इच्छाएँ ही दु:ख का मूल कारण हैं। गांधी ने लालच को सबसे बड़ी बुराई बताया। जैन धर्म में अपरिग्रह की अवधारणा भी इच्छाओं के नियंत्रण से संबंधित हैं।
निष्कर्षत: इच्छाओं का दमन इसलिये भी साहसपूर्ण कार्य है क्योंकि यह अपने स्वरूप में मित्रवत: प्राप्य तथा आनंद देने वाला प्रतीत होता है, जबकि शत्रु त्याज्य तथा दु:ख देने वाला होता है।
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