द्वितीय विश्वयुद्ध में अधिनायकवादी विचारधाराओं ने राष्ट्रों को एकीकृत रूप प्रदान किया, जिससे एक वैचारिक साम्यता एवं टकराव उत्पन्न हुआ। स्पष्ट करें।
26 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • द्वितीय विश्वयुद्ध में अधिनायकवादी विचारधाराओं के कारण उग्र राष्ट्रवाद का उदय एवं इसका प्रभाव • निष्कर्ष |
प्रथम विश्वयुद्ध के वैश्विक परिदृश्य में मित्र राष्ट्र अपनी औपनिवेशिक विचारधारा के साथ वैचारिक एवं संगठनात्मक आधार पर प्रभावित करने में सफल रहे, जिसके कारण पराजित राष्ट्रों में अनचाहा राष्ट्रवाद भी प्रकट हुआ। इटली का लाभ उसके अनुकूल न था। अत: उसमें असंतोष का भाव उत्पन्न हुआ। इसी विचार क्रम में जर्मनी में हिटलर के नाजीवाद और इटली में मुसोलिनी के फासीवादी अधिनायकवाद ने उग्र राष्ट्रवाद को संगठित कर संपूर्ण शक्तियों को अधिग्रहीत किया तथा नवीन परिवर्तन के रूप में अपनी विचारधाराओं को एक मंच पर संगठित कर मित्र राष्ट्रों की विचारधारा का सव्रिय विरोध प्रारंभ किया। यहाँ स्पष्ट रूप से यूरोपीय परिदृश्य के अनुरूप प्रारंभिक विरोध साम्यवाद के विरुद्ध था। परंतु ब्रिटेन तथा फ्रांस जैसी शक्तियों के सक्रिय पूंजीवाद का विरोध भी इसमें शामिल था।
अधिनायकवादी विचारधारा ने स्पष्ट रूप से राष्ट्र को एक नए ढंग से कल्पित किया, जिसमें संपूर्ण शक्तियों का केंद्र एक व्यक्ति विशेष था। राष्ट्र सर्वोपरि था जिसका प्रतीक वह स्वयं अधिनायक था। मित्र राष्ट्रों के विरुद्ध आक्रोश का मुख्य कारण प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् हुई संधियाँ थी। जिसमें जर्मनी और राष्ट्रों के विरुद्ध आव्रोश का मुख्य कारण प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् हुई संधियाँ थी। जिसमें जर्मनी और इटली को राष्ट्रीय अपमान का सामना करना पड़ा। जिसका विरोध करते हुए अधिनायकवाद ने वैश्विक नियंत्रण के प्रयास प्रारंभ किये। इसके वैचारिक एकीकरण का विरोध मित्र राष्ट्रों ने किया जिसमें प्रारंभ में तुष्टीकरण की नीति अपनाई, जो द्वितीय विश्वयुद्ध में परिवर्तित हुई। इन राष्ट्रों के मध्य एक धुरी का निर्माण हुआ जिसे रोम-बर्लिन धुरी कहा गया। बाद में जापान को सम्मिलित कर निरंकुश सैन्यवाद का समर्थन प्राप्त किया और रोम-बर्लिन-टोकियो धुरी का निर्माण कर मित्र राष्ट्रों के विरोध में सक्रियता दर्ज की। जर्मनी के बढ़ते हुए इस प्रभाव को देखते हुए जर्मनी, फ्रांस एवं ब्रिटेन के मध्य 1937 का म्यूनिख समझौता हुआ जिसमें दोनों ही देश जर्मनी के प्रति तुष्टीकरण की नीति अपना रहे थे। परंतु यह समझौता जर्मनी के पोलैंड अभियान के बाद स्वत: टूट गया तथा और द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रारंभ हुआ।
इस घटनाक्रम में स्पष्ट रूप से मित्र राष्ट्र एवं धुरी राष्ट्रों के मध्य उत्पन्न वैचारिक गतिरोध, सामरिक रणनीति, प्रत्यक्ष साम्राज्यवाद, संधियों तथा प्रति संधियों का प्रभाव, साम्यवाद का प्रसार इन सभी के मध्य स्पष्ट रूप से जिन परिस्थितियों का निर्माण हुआ, वे द्वितीय विश्वयुद्ध में परिवर्तित हो गई।