नि:सन्देह, किसी भी देश तथा समाज की प्रगति को मापने का सबसे बेहतर पैमाना ‘लोकतांत्रिक मूल्य’ है, इसे भारतीय संविधान निर्माताओं ने न सिर्फ समझा अपितु स्थापित करने का भी प्रयास किया किंतु राजनीतिक दलों की आतंरित संरचना में इसका स्पष्ट अभाव देखने के मिलता है। विश्लेषण करें।
23 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
हल करने का दृष्टिकोण • भूमिका • राजनीतिक दलों की आतंरित संरचना में लोकतान्त्रिक मूल्यों के आभाव के पक्ष में तर्क • समाधानयुक्त निष्कर्ष |
फ्रांसीसी क्रांति द्वारा स्थापित स्वतंत्रता, समानता एवं चाय के आदर्श ही लोकतांत्रिक मूल्याें का आधार है। ये मूल्य वृहद परिप्रेक्ष्य में किसी देश एवं समाज की प्रगति के बेहतर मानक होते हैं जो उसे सर्वसमावेशी, न्यायिक तथा लोकतांत्रिक बनाते हैं।
इसी कारण भारतीय संविधान निर्माताओं ने लोकतांत्रिक मूल्यों को जीवन-दर्शन के रूप में स्थापित किया है, जिसकी झलक संविधान की प्रस्तावना में ही दिख जाती है। यही कारण है कि आज़ादी के दशकों बीत जाने के बाद भी हमारा लोकतंत्र जीवन रूप से आगे बढ़ रहा है। जबकि कई पड़ोसी तथा अन्य लोकतांत्रिक देशों में तख्ता-पलट जैसी कार्रवाई देखने को मिली।
लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास के बावजूद एक मुख्य खामी के रूप में देश की राजनीतिक पार्टियों में लोकतांत्रिक मूल्याें का अभाव देखा जाता है।
जैसे-
जिसके कारण निम्नलिखित समस्याएँ देखने को मिलती हैं-
यद्यपि 1999 में विधि आयोग तथा बाद में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग तथा संविधान समीक्षा आयोग ने भी पार्टियों के अंदर आंतरिक लोकतंत्र की आवश्यकता पर बल दिया, किंतु आज तक दलों द्वारा इसे सुनिश्चित करने हेतु सार्थक प्रयास नहीं किये गए।
निष्कर्षत: राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने की आवश्यकता है क्योंकि यह वित्तीय तथा चुनावी जवाबदेही को बढ़ावा देने भ्रष्टाचार कम करने तथा पूरे देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में सुधार करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।