प्राचीन तथा मध्यकालीन शासकों द्वारा संगीत के संरक्षण तथा प्रोत्साहन ने भक्ति परंपरा को जीवंत बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। परीक्षण करें।
19 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • शासकों द्वारा भक्ति परंपरा के संगीत के संरक्षण में योगदान • निष्कर्ष |
भारतीय इतिहास के सभी कालों में संगीत तथा भक्ति का संबंध अन्योन्याश्रितता का रहा है। भक्ति परंपरा में संगीत एक ऐसा साधन था जिसके माध्यम से ईश्वर को सर्वस्व समर्पित किया जाता था। प्राचीन तथा मध्यकालीन शासकों द्वारा राजदरबारी संगीत को प्रोत्साहन ने न केवल संगीत को जीवंत बनाया, बल्कि भक्ति परंपरा को भी मज़बूती प्रदान की।
उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल में समुद्रगुप्त, धार के राजा भोज तथा कल्याण के राजा सोमेश्वर आदि ने संगीत को संरक्षण दिया था। राजाओं की संगीत को संरक्षण देने की प्रवृत्ति के कारण भक्त कवियों ने अपनी-अपनी रचनाओं में ‘संगीत’ को महत्त्व देना प्रारंभ किया। 12वीं शताब्दी में ओडिशा के जयदेव ने ‘गीत-गोविंद’ जैसे उत्कृष्ट राजकाव्य की रचना की जिसका प्रत्येक गीत रागों पर आधारित था। ‘गीत-गोविंद’ राधा और कृष्ण के प्रेम-प्रसंगों पर रचित काव्य है। अभिनवगुप्त द्वारा रचित ‘अभिनवभारती’ ग्रंथ संगीत के विषय में उपयोगी जानकारी प्रदान करता है। इसी तरह शैववादी ‘नयनार’ तथा वैष्णववादी ‘अलवारों’ ने अपनी कविताओं की रचना संगीत के आधार पर की।
मुगलकाल में भी संगीत को संरक्षण दिया गया। इस काल में ‘कव्वाली’, ‘ख्याल’ आदि का विकास हुआ। अकबर ने गीतों को रागात्मक रूप से बांधा तथा संगीतकारों को प्रोत्साहित किया। इससे प्रभावित होकर मध्यकाल में सूफी तथा भक्ति संतों ने संगीत को बढ़ावा दिया। सूफी खानकाहों में कव्वालियाँ गाई जाती थी, वहीं भक्ति संतों के कारण भक्ति संगीत, जैसे- कीर्तन और भजन आदि लोकप्रिय हुए।
मुगल शासकों के संरक्षण में ही स्वामी हरिदास तथा उनके शिष्यों ने अनेक गीतों को विभिन्न धुनों को बांधा। इब्राहिम आदिलशाह द्वितीय द्वारा रचित 17वीं शताब्दी में ‘किताब-ए-नवरस’ में मुस्लिम संतों तथा देवी-देवताओं को प्रशंसाओं की कविताओं का संग्रह है।
निष्कर्षत: प्राचीन तथा मध्यकालीन शासकों द्वारा संगीत को दिये गए संरक्षण ने भक्ति परंपरा को जीवंत बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।