भारतीय पुनर्जागरण 19वीं शताब्दी को एकीकृत होते भारत के रूप में प्रस्तुत करने में सफल रहा। क्यों?
07 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • भारतीय पुनर्जागरण का महत्त्व • निष्कर्ष |
19वीं शताब्दी में ब्रिटिश औपनिवेशिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप भारत में एकीकृत शासन प्रणाली तथा प्रशासनिक व्यवस्था की शुरुआत हुई जिसके कारण ब्रिटिश सरकार के अधीन रहे भारतीय क्षेत्रों में भारत जैसी संकल्पना के लक्षण दिखाई देते हैं। इसलिये राजनीतिक तथा आर्थिक आधार पर एकीकृत भारत को ब्रिटिश शासन की परोक्ष देन माना जाता है।
औपनिवेशिक व्यवस्था के परिणामस्वरूप सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ कि ब्रिटिश शासन को प्रत्येक वैधानिक व्यवस्था को एक समान भारत में उनके क्षेत्र में लागू किया गया। यह प्रक्रिया उन देशी रियासतों से पूर्णत: भिन्न थी जो अंग्रेजी नियंत्रण से मुक्त थे, किंतु वहाँ की जनता द्वारा भी इसी तरह के परिवर्तनों को लागू किये जाने की मांग की जाने लगी, जैसे कि पश्चिमोत्तर क्षेत्र की कुछ देशी रियासतों में भी दिखाई देता है, लेकिन अंग्रेजों के इस प्रयास से सामाजिक एकता को बढ़ावा नहीं मिला जिसे सुनिश्चित करने में पुनर्जागरण का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
पुनर्जागरण के कारण मानवतावादी मूल्यों को प्रश्रय प्रदान किया गया। मानव के ऊपर स्वयं मानव के ही नियंत्रण को स्वीकार करते हुए वर्ण भेद, जाति भेद, लिंग भेद आदि के संदर्भ में प्रभावी उपाय सुझाए गए, जिसके द्वारा सामाजिक चेतना का उदय हुआ। इसमें सामाजिक एकता निहित थी जिसने अंतत: राष्ट्रवाद को भी मजबूत आधार प्रदान करने का कार्य किया।
इस प्रकार अंग्रेजों ने भारत में राजनीतिक तथा आर्थिक एकीकरण का सूत्रपात किया, वहीं भारतीय पुनर्जागरण ने सामाजिक एकता का लक्ष्य निर्धारित कर 19वीं सदी के भारत को एकीकृत भारत में परिवर्तित करने का कार्य किया।