‘अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख’ का सिद्धांत व्यक्ति एवं राज्य के लिये किस प्रकार उपयोगी हो सकता है? स्पष्ट कीजिये।
05 May, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • कथन के समर्थन में तर्क • निष्कर्ष |
उपयोगितावाद 10वीं और 19वीं शताब्दियों में विकसित हुई एक ‘परिणाम सापेक्षवादी’ विचारधारा है, जो ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ को केंद्र में रखती है। यह विचारधारा व्यक्ति-विशेष के हित में न होकर ‘व्यापक सामाजिक हित’ की पुष्टि करता है। इसके समर्थक बेंथम, मिल, सिजविक आदि है।
उल्लेखनीय है कि अधिकांश उपयोगितावादी सुखवादी भी है और किसी वस्तु या कार्य की उपयोगिता इस बात से तय करते हैं कि वह समाज के अधिकतम व्यक्तियों को कितना सुख प्रदान करती है- यह मूल आदर्श व्यक्ति तथा राज्य दोनों के लिये उपयोगी है। जैसे- ‘अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख’ को महत्त्व देने से समाज में व्यापक ‘व्यक्तियों’ के शुभ को सुनिश्चित किया जा सकेगा जिससे यह विचारधारा व्यक्ति के सुखों के स्तर पर सहायक हो सकती है।
उल्लेखनीय है कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में नीति-निर्माण के समय यह मुख्य मुद्दा रहता है कि नीतियों के निर्माण किस वर्ग के लिये किया जाए एवं क्या सभी व्यक्तियों को समान माना जाना चाहिये। इस संदर्भ में बेंथम का प्रसिद्ध कथन है- ‘प्रत्येक व्यक्ति का महत्त्व केवल एक व्यक्ति का महत्त्व है इसके अधिक नहीं।’ अत: राज्य को यह सुविधा होती है कि नीति-निर्माण करते समय अमीर व्यक्ति का हित या महत्त्व उतना ही गिना जाएगा जितना गरीब व्यक्ति का साथ ही नीतियों का निर्धारण अधिकतम व्यक्तियों के हितों को ध्यान में रखकर किया जाए, जिससे विभिन्न व्यक्तियों में सुख के न्यायपूर्ण वितरण को सुनिश्चित किया जाए।