यह कहना कहाँ तक तर्क संगत होगा कि वैदिकोत्तर काल की अर्थव्यवस्था में हुए परिवर्तनों ने भारत में नए धार्मिक आंदोलनों को जन्म दिया था?
30 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • अर्थव्यवस्था में परिवर्तन एवं धार्मिक आंदोलन के मध्य संबंध • निष्कर्ष |
छठी शताब्दी ईसा पूर्व का काल धार्मिक तथा आर्थिक अशांति का काल था। 600 ई.पू. गंगा की घाटी में कई धार्मिक आंदोलनों की शुरुआत हुई। समकालीन स्रोतों से पता चलता है कि ऐसे 62 धार्मिक संगठन तत्समय अस्तित्व में थे। इन धार्मिक सम्प्रदायों के उदय में सामाजिक-आर्थिक कारकों की भूमिका निर्णायक रही। जिसे निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है-
उपरोक्त से स्पष्ट है कि वैदिकोत्तर काल की अर्थव्यवस्था में हुए परिवर्तनों ने भारत में नए धार्मिक आंदोलनों को जन्म दिया, किंतु केवल आर्थिक कारण ही उन आंदोलनों के लिये उत्तरदायी नहीं थे। वस्तुत: तत्कालीन समाज में उपजे अंतविरोधों के कारण भी नए धर्म की पृष्ठभूमि तैयार हुई। प्रचलित वर्णव्यवस्था ने केवल ब्राह्मण वर्ण के वर्चस्व ने अन्य वर्णों को विरोध के लिये प्रेरित किया। यही कारण था कि बौद्ध तथा जैन धर्म के प्रणेता भी क्षत्रिय वर्ण से संबंधित थे।