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प्रश्न :
हाल ही में विदेश मंत्रालय द्वारा नई एवं उभरती हुई सामरिक प्रौद्योगिकियों (NEST) हेतु नए प्रभाग की घोषणा की है। NEST के उद्देश्यों क्या है? भारत के समक्ष इस क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डालें।
27 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण:
• भूमिका
• NEST के उद्देश्य
• चुनौतियाँ
• निष्कर्ष
हाल ही में, विदेश मंत्रालय द्वारा नई तथा उभरती सामरिक प्रौद्योगिकियों (New and Emerging Strategic Technologies: NEST) हेतु एक नए प्रभाग की स्थापना करने की घोषणा की है जो विदेश मंत्रालय के अंतर्गत एक नोडल प्रभाग के रूप में कार्य करेगा।
उद्देश्य: उभरती हुई प्रौद्योगिकियों एवं प्रौद्योगिकी-आधारित संसाधनों के संदर्भ में विदेश नीति तथा अंतर्राष्ट्रीय कानूनी निहितार्थों का आकलन करना।
- G-20 जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारतीय हितों की रक्षा हेतु विचार-विमर्श को सुगम बनाना।
- तकनीक-आधारित कूटनीतिक कार्यों के लिये इस मंत्रालय के भीतर मानव संसाधन क्षमता का निर्माण करना।
- 5-G तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में विदेशी भागीदारों के साथ सहयोग स्थापित करना।
भारत के समक्ष चुनौतियाँ:
- तकनीकी प्रतिनिधियों की कमी: भारत के पास तकनीकी कूटनीति के क्षेत्र में विशेषज्ञों या मौजूदा राजनयिकों को प्रशिक्षित करने हेतु एक प्रभावी भर्ती तथा प्रशिक्षण तंत्र का अभाव है।
- सौदेबाजी की निम्न स्थिति: वैश्विक बाज़ार में उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों में भारत की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम है तथा उच्च प्रौद्योगिकी उत्पादों का आयात बढ़ रहा है। इस क्षेत्र में सॉफ्ट पावर के तौर पर इसके विकसित होने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
- द्विपक्षीय समझौतों का अभाव: उभरती प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की वैश्विक स्थिति को सुदृढ़ करने हेतु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण; सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र आदि से संबंधित मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों का अभाव।
नीतिगत अनिश्चितता एवं संरचनात्मक चुनौतियाँ- भारत को कई नियामकों एवं विभागों के मध्य समन्वय की कमी, सुसंगत और व्यापक घरेलू नीति की अनुपस्थिति आदि विभिन्न मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है। जो अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत की वार्ता शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
- विदेशी नीति के साथ भारत के घरेलू हितों को समेकित करना: जहाँ एक ओर भारत को अभिशासन, रक्षा अनुसंधान आदि के क्षेत्र में नवीन प्रौद्योगिकियों के उद्भव से काफी हद तक लाभ प्राप्त होने की उम्मीद है, वही दूसरी ओर इसे स्वचालन के माध्यम से रोज़गारों की क्षति, वैश्विक कंपनियों के तकनीकी एकाधिकार आदि जैसे मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है।
निष्कर्षत: प्रौद्योगिकी को विदेशी मामलों और कूटनीतिक क्षेत्रों में शक्ति तथा वैधता दोनों के लिये एक चालक के रूप में देखा जाता हैं इसलिये विकासशील देशों के लिये इन उभरती प्रौद्योगिकियों से निपटने और अपने हितों की रक्षा के लिये पर्याप्त रूप से तैयारी करना महत्त्वपूर्ण है।
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