लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    मौर्योत्तर काल में साहित्य के विभिन्न रूपों का विकास हुआ, टिप्पणी करें।

    25 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    हल करने का दृष्टिकोण:

    • भूमिका

    • मौर्योत्तर काल में साहित्य के विभिन्न रूपों का विकास

    • निष्कर्ष

    मौर्योत्तर काल के विषय में जानकारी देने वाले स्रोतों में साहित्यिक स्रोत प्रमुख है। एक सातवाहन शासक द्वारा ‘हाल’ छद्म नाम से लिखी गई गाथा ‘सप्तशती’ प्राकृत भाषा की बहुत सुंदर काव्य रचना है, यद्यपि इस काल में साहित्य-रचना में संस्कृत भाषा का प्रचलन अधिक था। ई.पू. दूसरी सदी के मध्य में पतंजली ने अपना महाभाष्य लिखा जो उनके पूर्ववर्ती वैयाकरण पाणिनि की प्रसिद्ध रचना ‘अष्टाध्यायी’ की टीका है। चिकित्सा शास्त्र पर भी मौलिक ग्रंथ लिखे गए जिनमें सबसे प्रसिद्ध चरक-कृत ‘चरकसंहिता’ है। चरक, कुषाण शासक कनिष्क का समकालीन था। इस क्षेत्र में एक अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति सुश्रुत है। चिकित्सा शास्त्र एवं ज्योतिष शास्त्र में भारत में पश्चिमी जगत से संपर्क द्वारा बहुत लाभ उठाया। कुछ विद्वानों के अनुसार भरत का ‘नाट्यशास्त्र’ तथा वात्स्यायन का ‘कामसूत्र’ भी इसी काल की रचनाएँ है।

    भारत की सर्वप्रसिद्ध स्मृति मनुस्मृति ई.पू. दूसरी शती से ईसा की दूसरी शती के मध्य लिखी गई। संस्कृत काव्य की प्रारंम्भिक शैली की महत्वपूर्ण कृति अश्वघोष का ‘बुद्धचरित’ है। अश्वघोष कनिष्क का समकालीन था। इसी का एक अन्य छंदबद्ध काव्य ‘सौन्दरानन्द’ है, जो बुद्ध के सौतेले भाई आनंद के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने के प्रसंग पर आधारित है। अश्वघोष के नाटकों के कुछ भाग मध्य एशिया के एक विहार में प्राप्त हुए थे।

    संभवत: सबसे पहले संपूर्ण नाटक रखने का श्रेय भाष को है। इसमें से सर्वप्रसिद्ध है ‘स्वप्नवासदत्तम’ जो राजा उदयन एवं वासवदत्ता की कथा पर आधारित है। इस काल में संस्कृत ब्राह्मणों की भाषा न रहकर शासक वर्ग की भाषा बन गई। रद्रदामन का गिरनार अभिलेख संस्कृत काव्य का अनूठा उदाहरण है। कुषाण साम्राज्य के सुई विहार अभिलेख में भी संस्कृत का प्रयोग हुआ है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2