‘सुख और दुख एक सिक्के के दो पहलू हैं, किंतु सभी मनुष्य ‘सुख’ की आकांक्षा करते हैं इसलिये दुख आने पर मनुष्य उदास और अपराधबोध से भर जाता है। टिप्पणी करें।
21 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • सुख दुःख का जीवन पर प्रभाव • सकारात्मक सोच • निष्कर्ष |
यह सच है कि सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों ही मनुष्य की अनुभूति का परिणाम है। अक्सर अनुकूलताओं में सुख और प्रतिकूलताओं में दुख महसूस करना मनुष्य का स्वभाव है। सभी मनुष्य ‘सुख’ की आकांक्षा करते हैं यही कारण है कि दुख आने पर व्यक्ति उदास तथा अपराधबोध से भर जाता है जबकि सच यह है कि दुख से लड़कर ही व्यक्ति बुद्धिमान तथा जीवन के संघर्षों में नए लक्ष्यों को प्राप्त करने में स्वयं को सक्षम बना पाता है।
उल्लेखनीय है कि दुख के समय व्यक्ति यह महसूस करता है कि उसका जीवन व्यर्थ है, परंतु दुख का एक दूसरा सकारात्मक पक्ष यह भी है कि ऐसे समय में ही व्यक्ति को इस बात का बोध होता है कि कौन-सा व्यक्ति अपने साथ है और कौन-सा व्यक्ति केवल स्वार्थपूर्ण संबंधों को निभा रहा है? इस संदर्भ में देखें तो दुख व्यक्ति को सचेत बनाता है तथा दुख में ही व्यक्ति नई शक्ति से परिपूर्ण होता है तथा जीवन में आने वाली कठिनाइयों का धैर्य पूर्वक सामना करने में सक्षम बन पाता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो प्रथम विश्वयुद्ध, द्वितीय विश्वयुद्ध, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद के काल में अधिकांश मानवता को दुखों का सामना करना पड़ा किंतु इन परिस्थितियों का सामना करके कालांतर में जो नीतियाँ बनी उसमें मानव हितों को केंद्र में रखा गया। ठीक इसी प्रकार भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के बाद ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति मिली और स्वतंत्र लोकतंत्र की स्थापना हुई तथा देश में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया। इसी प्रकार जब मज़दूरों का शोषण बढ़ा तो पूंजीवाद के विरुद्ध ‘मार्क्स’ ने समाजवाद की अवधारणा प्रस्तुत कर नीतियों के केंद्र में मज़दूरों को लाने की अपील की।
वर्तमान संदर्भों में देखें तो पर्यावरणीय समस्याएँ, आतंकवाद, शरणार्थी समस्या आदि का सामना करने हेतु विभिन्न देश एकजुट है। इस प्रकार देखें तो मानव जीवन तथा मानव सभ्यता के विकास क्रम में सुख-दुख का चक्र चलता रहता है। किसी विद्वान ने सच ही कहा है ‘दुख से लड़कर ही व्यक्ति जिंदादिल और अपने अस्तित्व की अनुभूति कर पाता है। अत: दुखों के समय में व्यक्ति में धैर्य, साहस, संयम जैसे सद्गुणों का विकास होता है जो व्यक्ति की सफलता में अत्यंत महत्त्वपूर्ण होते हैं।