‘क्रोध तथा असहिष्णुता न सिर्फ व्यक्ति अपितु समाज दोनों की उन्नति में बाधक है।’’ टिप्पणी करें।
18 Apr, 2020 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्न
हल करने का दृष्टिकोण: • भूमिका • नकारात्मक प्रभाव • व्यक्ति एवं समाज के लिये अहितकारी • निष्कर्ष |
नैतिक दृष्टिकोण से काम, क्रोध, ईर्ष्या, लोभ तथा असहिष्णुता जैसे मूल्यों को प्रत्येक समाज में व्यक्ति तथा समाज दोनों की उन्नति में अवरोधक माना जाता है।
क्रोध एक मनोभाव है जो किसी विपरीत परिस्थिति की प्रतिक्रिया स्वरूप उत्पन्न होता है। क्रोधित व्यक्ति का मूल लक्षण है कि उसका व्यवहार अनियंत्रित या असंतुलित होता है। ऐसे में व्यक्ति की हृदय गति तथा रक्तचाप का बढ़ना स्वाभाविक होता है। क्रोधी प्रवृत्ति का व्यक्ति ऊँची आवाज़ में बात करने के साथ कभी-कभी हिंसक प्रवृत्तियों द्वारा भी प्रतिक्रिया करता है। अनियंत्रित तथा अतार्किक व्यवहार विनाशकारी होता है और ऐसा क्रोध जो सिर्फ बदले की भावना से प्रेरित होता है वह न सिर्फ व्यक्ति बल्कि समाज के लिये भी अहितकर होता है।
असहिष्णुता से आशय सहन न कर पाने से है, दूसरे शब्दों में असहिष्णुता से आशय अपने धर्म, मत, भाषा, परंपरा, विचार के अलावा किसी अन्य को धर्म, मत, भाषा, परंपरा, विचार को स्वीकार न करने से है।
क्रोध तथा असहिष्णुता को परस्पर संबंधित माना जाता है क्योंकि दोनों में घृणा का भाव स्थायी होता है, ये दोनों ही व्यक्ति की छवि को नकारात्मक बनाते हैं।
कभी-कभी यह व्यक्ति को मानसिक रूप से बीमार भी बना देती है। इन दोनों के कारण व्यक्ति अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर पाता जिससे व्यक्ति का नैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक उत्थान बाधित होता है।
क्रोध तथा असहिष्णुता का प्रयोग समाज में एक वर्ग, धर्म व समुदाय विशेष द्वारा दूसरे वर्ग, धर्म व समुदाय के प्रति घृणा जैसे कृत्य को बढ़ावा देने के लिये होता है तो इससे सामाजिक
सौहार्द्र को हानि पहुँचती है,जिससे धर्म निरपेक्षता, बहुसंस्कृतिवाद तथा बंधुत्व जैसे लोकतांत्रिक मूल्यों को क्षति पहुँचती है। इसके कारण समाज कई वर्गों में विभाजित होने लगता है जिसकी अंतिम परिणति दंगों के रूप में सामने आती है, जो हमारी कानून व्यवस्था के समक्ष भी चुनौतियाँ उत्पन्न करती है एवं इससे हमारी वैश्विक लोकतांत्रिक छवि को भी नुकसान पहुँचता है।